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इस वजह से सिंधु नदी आज भी हिंदुस्तान के लिए रखती है इतनी ज्यादा अहमियत !

सिंधु नदी

सिंधु नदी – इतिहास के पन्नों को पलटकर देखे तो सिंधु नदी, सिंधु घाटी की सभ्यता का एक जीता जागता प्रमाण है.

सिंधु नदी ही एक ऐसी नदी है जिसके नाम से हमारे देश का नाम हिंदुस्तान पड़ा और इस क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को हिंदू कहा गया.

सिंधु को अंग्रेजी में इंडस कहा जाता है और इसी से भारत के अंग्रेजी नाम इंडिया का जन्म हुआ था. लेकिन ये हिंद्स्तान की बदकिस्मती है कि आज इस प्राचीन नदी का अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में आता है.

लेकिन हिंदुस्तान और यहां की आवाम के लिए आज भी सिंधु नदी की सबसे ज्यादा अहमियत है.

सिंधु नदी से जुड़ी है हिंदुस्तान की पहचान

आज भारत और पाकिस्तान के तल्ख रिश्तों के बीच सिंधु नदी के पानी पर अधिकार को लेकर लगातार दोनों देशों के बीच तनातनी का माहौल बना रहता है. बावजूद इसके ये नदी हिंदुस्तान के लिए इसलिए इतनी अहमियत रखती है क्योंकि इसी से हमारे देश की असली पहचान जुड़ी हुई है.

दरअसल सिंधु नदी का ताल्लुक हिंदुओं के आराध्य भगवान शिव के कैलाश पर्वत के पास स्थित मानसरोवर से है. बताया जाता है कि इस नदी का उद्गम स्थल यहीं पर है और यहीं से सिंधु नदी हिमालय की चोटियों को चीरते हुए कश्मीर तक पहुंचती है.

भारत में इस नदी की कुल लंबाई तकरीबन एक हजार किलोमीटर है और यहां से वो पाकिस्तान की ओर बहती है. सिंधु नदी के जल को बहुत ही पवित्र माना जाता है क्योंकि इसका जिक्र हिंदू धर्म के वेदों में भी मिलता है.

मान्यताओं के अनुसार इस नदी के किनारे ही वैदिक धर्म व संस्कृति का आरंभ और विस्तार हुआ है. यही नहीं वाल्मिकी रामायण में सिंधु नदी को महानदी का दर्जा भी दिया गया है.

भूकंप और बंटवारे ने बदल दी इसकी पहचान

आज सिंधु नदी की जो पहचान बताई जाती है दरअसल सालों पहले इसकी पहचान कुछ और ही हुआ करती थी. एक समय ऐसा था जब सिंधु नदी कश्मीर से पाकिस्तान के पंजाब से होते हुए भारत में गुजरात से भी निकलती थी. लेकिन साल 1819 में गुजरात के कच्छ में आए एक भयानक भूकंप ने इस नदी की धारा को ही बदल दिया.

भूकंप के बाद गुजरात के लखपत के किले के पास से होकर गुजरनेवाली यह नदी करीब 150 किलोमीटर दूर खिसक गई जिससे इसके आसपास का इलाका सूखा और वीरान हो गया.

इस नदी के रास्ते में पहले कई विशाल और भव्य मंदिर हुआ करते थे लेकिन धीरे-धीरे ये सभी खंडहर में तब्दील हो गए और जो थोड़े-बहुत मंदिर पाकिस्तान के हिस्से में आते थे उन्हें तोड़ दिया गया.

लेकिन भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने सबसे पहले सिंधु के चरित्र को बदलने का ही काम शुरू किया. पाकिस्तान ने सबसे पहले इससे जुड़ी संस्कृति और धर्म को नष्ट किया.

कहा जाता है कि हिंदूओं की पवित्र नदी गंगा से पहले हिंदू संस्कृति में सिंधु और सरस्वती की ही महिमा थी. जल के विशाल भंडार को अपने भीतर समेटने वाली इस नदी की सहायक नदियों के जल को भी सिंधु के जल की तरह की पवित्र माना जाता था.

गौरतलब है कि भारत पाक के बंटवारे में सिंधु नदी के अस्तित्व को भी पूरी तरह से बदलने की कोशिश की गई. इतना ही नहीं हिंदुस्तान और हिंदूओं के लिए खास अहमियत रखनेवाली यह प्राचीन नदी आज अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए नहीं बल्कि सिर्फ दो मुल्कों के आपसी विवाद के कारण ही सुर्खियों में आती है.