सैकड़ों गाड़ियों में मशीनगनों से लैस हथियारबंद लोगों का काफिला जब राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ता है तो सड़कों पर हाहाकार मच जाता है.
हर कोई जानने को बेताब था कि संगीनों के साए में सवार ये शख्स आखिर है कौन.
ये कोई मामूली आदमी नहीं बल्कि अफगानिस्तान के इतिहास के सबसे विवादित शख्सियतों में से एक गुलबुद्दीन हिकमतयार था. हिकमतयार ने करीब बीस साल बाद जब अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में प्रवेश किया तो एक बार को वहां हड़कंप मच गया.
आप को बता दें कि 90 के दशक में गृहयुद्ध के दौरान राजधानी काबुल में जब हजारों लोगों की निर्मम हत्या की गई तो हिकमतयार ही देश के प्रधानमंत्री थे. उल्लेखनीय है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद ही हिकमतयार काबुल से भागे थे.
गौरतलब हो कि वर्ष 1992-96 तक चले इस खूनी संघर्ष के कारण गुलबुद्दीन हिकमतयार उस समय पूरी दुनिया में काबुल का कसाई नाम से कुख्यात थे.
बहराल, जिसने 4 मई को सैकड़ों वाहनों के काफिले के साथ गुलबुद्दीन हिकमतयार काबुल में दाखिल हुए. वहां उन्होंने राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात की.
बताते चले कि पिछले साल सितंबर में गुलबुद्दीन हिकमतयार और अफगान सरकार के बीच शांति समझौता हुआ था. इसी समझौते ने राजनीतिक जीवन में उनकी वापसी की बुनियाद तैयार की थी. बताया जाता है कि गुलबुद्दीन हिकमतयार को वार्ता की मेज पर लाने के लिए कई देशों ने पर्दे के पीछे भूमिका निभाई है.
क्योंकि अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए ये बेहद जरूरी है. वहीं गुलबुद्दीन हिकमतयार ने भी काबुल पहंुचने से पहले सालों बाद लघमान प्रांत में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया. इस दौरान अफगान तालिबान से शांति वार्ता में शामिल होने की अपील की.
अमेरिका चाहता है कि अफगान तालिबान वार्ता के लिए आगे आए और अफगानिस्तान के स्थायित्व और शांति के लिए सरकार में शामिल हों. जानकारों का भी मानना है कि तालिबान के साथ समझौते के बिना अफगानिस्तान में शांति नहीं हो सकती.
वहीं हिकमतयार के साथ समझौते को लेकर अफगान सरकार की आलोचना भी की जा रही है. इसका कारण हिकमतयार के गुट हज्ब-ए-इस्लामी का प्रभाव अब सीमित क्षेत्र तक ही है. जबकि अफगानिस्तान में दो साल पहले सक्रिय हुए आइएस हिकमतयार के गुट हज्ब-ए-इस्लामी से ज्यादा प्रभावी है.