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अगर पूर्वज आजादी के लिए लड़े थे तो फिर वंदे मातरम गाने से परहेज क्यों !

वंदे मातरम विवाद

वंदे मातरम विवाद – देश में मुस्लिम समुदाय द्वारा अक्सर ये शिकायत की जाती है कि आज भी भारत में उनकों संदेह की नजर से देखा जाता है, जबकि उनके पूर्वज आजादी के लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे.

लेकिन सवाल है कि जिस वंदे मातरम को गाने में उनके पूर्वजों को कोई परहेज नहीं था उसको गाने में उन्हें कबसे कठिनाई होने लगी.

जिस वंदे मातरम को गाकर आजादी की लड़ाई में कई देश भक्तों ने हसंते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया उसकों लेकर मुस्लिमों की रहनुमाई करने वाले लोगों को आज इस्लाम क्यों याद आ रहा है.

जबकि ये तो सन 47 में ही तय हो चुका था कि जिनकों वंदे मातरम गाने में एतराज था उनके लिए पाकिस्तान के दरवाजे खुले थे. हुआ भी यही कि जिनकों वंदे मातरम नहीं गाना था वो पाकिस्तान चले गए.

आपकों बता दें कि इन दिनों उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में वंदे मातरम विवाद चल रहा है. मेरठ के मेयर हरिकांत आहलूवालिया ने घोषणा की है कि नगर निगम के हर सदस्य को वंदे मातरम और राष्ट्र गान गाना होगा. अगर सदस्य ऐसा नहीं करेगा तो उसे बोर्ड की मीटिंग में नहीं आने दिया जाएगा या वह इसकी कार्यवाहियों में भाग नहीं ले पाएगा.

दरअसल, मंगलवार को मेरठ नगर निगम बोर्ड की मीटिंग में जब वंदे मातरम गाने की बारी आई तो बोर्ड के कुछ मुस्लिम सदस्यों ने इसको विरोध किया.

इन सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया था जिसके मुताबिक, वंदे मातरम गाना अनिवार्य नहीं है. जबकि मेरठ नगर निगम में लंबे वक्त से बैठक में वंदे मातरम गाने की परमपरा रही है.

ऐसे में जिस वक्त वंदे मातरम गाया जाता था उस दौरान मुस्लिम सदस्य हॉल के बाहर चले जाते थे और इसके खत्म होने पर वापस अंदर आ जाते थे. लेकिन 28 मार्च को जब कुछ मुस्लिम नगर निगम पार्षद कमरा छोड़कर जाने लगे तो भाजपा के सदस्यों ने इसका विरोध किया और कहा कि हिंदुस्तान में रहना है तो वंदे मातरम गाना होगा और वंदे मातरम विवाद शुरू हुआ.

राष्ट्रगीत का इस प्रकार बार बार अपमान किए जाने से नाराज मेरठ के मेयर आहलूवालिया ने ध्वनि मत से रेजलूशन पास करते हुए राष्ट्र गीत को गाना अनिवार्य किया तो माहौल गर्म हो गया. आहलूवालिया ने कहा, वंदे मातरम तब भी गाया जाता था जब निगम में मुस्लिम मेयर थे. तो अब क्या परेशानी है?

वंदे मातरम विवाद को लेकर पार्षद दिवान शरीफ की जो प्रतिक्रिया आई वह कई सवालों को जन्म देती है. उनका यह तर्क कि इससे हमें काफी बुरा लगा. वंदे मातरम गाने के लिए हमसे जबरदस्ती करना कहां तक उचित है. हमारे पूर्वज भी इस देश की आजादी के लिए लड़े थे.

तो ऐसे में फिर वही सवाल खड़ा होता है कि पूर्वजों ने वंदे मातरम गाया था तो उनको गाने में समस्या क्यों हो रही है. और मुस्लिम समाज कब अपने पूर्वजों द्वारा आजादी की लड़ाई में भूमिका की आड़ लेकर अपने को छुपाता रहेगा.

वह खुद उस प्रकार निकलकर क्यों नहीं सामने आता जिस प्रकार उनके पूर्वज निकलकर वंदे मातरम गाकर आजादी की लड़ाई में हिंदुओं के साथ चलते थे.