दोस्तों दुनिया में कोई काम छोटा नहीं होता.
लेकिन फिर भी हमारे समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो अपने से कम आर्थिक संपन्न लोगों को निम्न स्तर का समझने की गलती करते हैं. लेकिन कई बार छोटे से छोटे काम करने वाले व्यक्ति भी ऐसा काम कर जाते हैं, जिसकी किसी ने कल्पना भी ना की हो.
अगर आप जूता पॉलिश करने के काम को निम्न स्तर का या छोटा समझते हैं, तो आपको अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है.
अगर हुनर और बेहतरीन आईडिया हो तो किसी भी काम के माध्यम से बड़ी कामयाबी हासिल कर पाना संभव हो जाता है.
ऐसी हीं एक मिसाल पेश की है संदीप गजकस ने.
संदीप गजकस सफाई को बेहद पसंद करते थे. हर जगह उन्हें साफ-सुथरा रहना शुरू से ही पसंद आता था. हालांकि जब संदीप की शादी हुई तो उनके इस फितूर में थोड़ी कमी आई. लेकिन सफाई रखने का उनका जुनून कम नहीं हुआ.
अपने इसी सफाई पसंद आदत के कारण आज संदीप गजकस करोड़पति व्यक्ति बन चुका है.
संदीप ने एक बिजनेस की शुरुआत की. जिस बिजनेस को आमतौर पर लोग छोटे स्तर का मानते हैं. संदीप ने जूते की लॉन्ड्रिंग का बिजनेस शुरू किया और ये साबित कर दिया कि दुनिया में कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं है.
इंजीनियर हैं संदीप
बता दें कि संदीप गजकस ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फायरिंग इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की है.
नौकरी के लिए गल्फ जाने वाले थे. लेकिन तभी अमेरिका में 2001 में 9/11 का अटैक हो गया. जिस कारण संदीप ने विदेश जाने का ख्याय दिमाग से निकाल दिया.
दिमाग से विदेश जाने का ख्याल निकालने के बाद संदीप ने जूते पॉलिश का बिजनेस शुरू करने की ठान ली. लगभग 12,000 रुपए लगाकर संदीप गजकस ने अपने बिजनेस शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी. अपने दोस्तों और माता-पिता को अपना ये यूनिक आईडिया समझाया, और फिर कुछ महीनों तक संदीप ने खुद हीं जूता पॉलिश करने का काम किया. अपने बाथरुम को उन्होंने वर्कशॉप बनाया और जूते पोलिश को लेकर रिसर्च करनी शुरू कर दी.
इसके लिए संदीप ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के जूते पॉलिश करने का काम किया.
एक इंटरव्यू के दौरान संदीप ने बताया कि वो अपने इस जूता पॉलिश के बिजनेस को केवल पॉलिश से हटाकर रिपेयरिंग तक ले कर जाना चाहते थे. संदीप ने काफी लंबे समय तक इस पर रिसर्च भी किया. इन दिनों उन्होंने लाखों रुपए खर्च कर डाले और बार-बार उन्हें असफलता हाथ लग रही थी.
संदीप का कहना है कि वो पुराने जूते को नया बनाने और फिर उसे रिपेयर करने के तरीकों को ढूंढने में लगा था.
रिसर्च कर उन्होंने काफी समय बिताया और अंततः 2003 में देश की पहली ‘द शू लॉन्ड्री’ कंपनी की शुरुआत की. संदीप कहते हैं कि ‘मैंने सफलता हासिल करने के लिए फेल होना सीखा. और तरीकों को ढूंढने में सफल हुआ.’ मुंबई के अंधेरी इलाके में संदीप गजकस ने ये कंपनी शुरू की थी. लेकिन आज देश भर के कई शहरों में संदीप गजकश की कंपनी पहुंच चुकी है.
है ना दोस्तों, अगर इंसान के अंदर काम करने का जूनून हो, हुनर हो और एकाग्रता हो तो वो कुछ भी कर सकता है.