12 मार्च का दिन था.
जहां पूरा देश रंग के त्यौहार होली की खुशियों में डूबा था वहीं छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में उस दिन कुछ और ही तैयारी चल रही थी.
वहां रंगों से नहीं खून से होली खेलने की तैयारी हो रही थी. उस दिन नक्सली पहले से भी ज्यादा तैयारी के साथ आए थे. नक्सलियों ने यहां हमारे जवानों पर घात लगाकर हमला किया. हमले में में 12 जवान शहीद हो गए.
यह हमला कितना घातक था और इस वारदात से जुड़ी दिल दहलाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं उसको जानकर आपके होश उड़ जाएंगे. जवान किसी भी सूरत में बच न पाए और माओवादियों को जवाबी कार्रवाई में कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाए इसके लिए उन्होंने पहले से ही व्यवस्था कर रखी थी.
यहां जवानों पर माओवादियों ने तीर में बंधे बमों से हमला किया. जैसा कि आमतौर पर होता है कि जवान अपनी पोजिशन लेने के लिए पेड़ों की ओट लेते हैं और फिर वहां से फायर खोलते हैं. इस बार भी ऐसा ही किया. जवान जान बचाने और पोजिशन लेने के लिए पेड़ों के पीछे गए.
लेकिन वहां पेड़ों पर मौत बंधी थी. एक के बाद एक पेड़ों पर धमाके होने लगे. दरअसल, वहां माओवादियों ने आइईडी से ब्लास्ट कर दिया. यह अपनी तरह का पहला हमला था.
सूत्रों के मुताबिक, गोलीबारी से बचकर जवाबी कार्रवाई करने के लिए जवान जिस जगह पर पेड़ों की ओट लेकर खड़े हुए, वहां पहले से ही आइईडी बम लगे थे. माओवादियों ने बहुत सोच-समझकर वहां बम लगाया था. उन्हें पता था जवानों को कवर लेने के लिए वह जगह सबसे सुरक्षित लगेगी.
पुलिस ने यहां पर विस्फोटकों से लैस कई तीर भी बरामद किए हैं. इससे संकेत मिलता है कि पेड़ों के ऊपर बैठे हुए माओवादियों ने जवानों के ऊपर इन तीरों से भी हमला किया.
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते खबर आई थी कि बस्तर के जंगलों में वरिष्ठ माओवादी नेताओं की मुलाकात हुई है. इस इलाके में माओवादी कैडर की मौजूदगी से जुड़ी कुछ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर हो रही थीं.
आपको बता दें कि ये हमला पिछले दो साल के दौरान हुए नक्सली हमलों में से सबसे जानलेवा और घातक था. जानकारी के मुताबिक, माओवादियों की मंशा इससे भी जानलेवा हमला करने की थी, लेकिन इसमें वह नाकाम रहे. 100 जवानों की टुकड़ी में से माओवादी बहुत कम जवानों को ही अलग-थलग कर सके. अगर वे बड़ी संख्या में जवानों को अलग कर पाने में कामयाब हो जाते, तो शहीद होने वाले जवानों की संख्या और बढ़ सकती थी.
वहीं दूसरी ओर नक्सलियों द्वारा इतना बड़ा हमला करने की हिम्मत करने के पीछे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कल्लूरी के तबादले को भी बड़ी वजह माना जा रहा है.
गौरतलब है कि कल्लूरी के नेतृत्व में नक्सलियों के खिलाफ एक बड़ा अभियान शुरू किया था. जिसके बाद बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया. इसी अवधि में कई सारे कथित माओवादियों ने हिंसा का रास्ता भी छोड़ दिया था.
लेकिन मानवाधिकारवादियों के दवाब के कारण उनका हाल ही में तबादला कर दिया गया है.