चीन पिछले कुछ समय से बहुत परेशान है.
इतना परेशान कि वह अब सौदेबाजी के लिए भी तैयार है. चीन को बुद्ध यानी तवांग चाहिए. तवांग को पाने के लिए चीन मचल रहा है.
भारत के अरुणाचल प्रदेश इस छोटे से हिस्से बुद्ध यानी तवांग को लेकर चीन की बेचैनी का आलम ये है कि वह इसके बदले में अक्साई चिन भारत को सौंपने के लिए तैयार है.
आपको बता दें कि अक्साई चीन वह इलाका है जो चीन ने 1962 के युद्ध में भारत से कब्जाया था.
खास बात ये है कि बुद्ध यानी तवांग को लेकर ऐसी पेशकश कोई पहली बार नहीं आई है इससे पहले भी चीन गाहे बगाहे तवांग को लेने की इच्छा जताता रहा है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि ऐसा क्या है तवांग में जो चीन उसके लिए मरा जा रहा है?
आपको बता दें कि चीन अरुणाचल प्रदेश के बड़े हिस्से को लंबे समय से अपना दावा करता रहा है. चीन अरूणाचल के हिस्से पर अपना दावा करता उसी हिस्से में बुद्ध यानी तवांग शहर भी पड़ता है.
वहीं दूसरी ओर तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है और वहां पर उसे दक्षिणी तिब्बत कहता है. इसके पीछे बड़ी वजह है कि 15वें दलाई लामा का जन्म यहीं हुआ था.
असल में बुद्ध यानी तवांग शहर में तवांग मठ भी है जो एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. पहाड़ी पर बने तवांग मठ से पूरे शहर का शानदार नजारा देखने को मिलता है.
इसी वजह से चीन तवांग को अपने साथ लेकर तिब्बत की तरह ही प्रमुख बौद्ध स्थलों पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है.
आप को बता दें कि 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान चीन ने एक बार तवांग पर कब्जा भी कर लिया था लेकिन बाद में उसे यहां से वापस लौटना पड़ा.
वहीं अरुणाचल प्रदेश में स्थित तवांग भारत के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए भारत उस पर किसी भी सूरत में कब्जा छोड़ना नहीं चाहता.
दूसरे, अगर भारत किसी भी तरह चीन से अदला बदली में तवांग को उसे सौंप देता है, तो सामरिक और कूटनीतिक रूप से अरुणाचल प्रदेश पर भारत की पकड़ कमजोर हो जाएगी जिसे चीन हमेशा से अपना हिस्सा बताता रहा है.
तवांग के कब्जे में आते ही चीन देर सबेर अरुणाचल प्रदेश के बाकी हिस्से पर भी अपना दावा ठोंक सकता है.
ऐसे में तवांग को चीन को सौंपना भारत के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो जाएगा.
जबकि तवांग के बदले चीन जिस अक्साई चीन इलाके को भारत को सौंपने की पेशकश कर रहा है वो बंजर और बर्फीला क्षेत्र होने के कारण भारत के लिए ज्यादा महत्व नहीं रखता.
चीन को लगता है कि भारत उसके प्रस्ताव पर फिसल जाएगा और जमीन की अदला बदली के लिए तैयार हो जाऐगा.
जैसा कि भारत ने हाल ही में बांग्लादेश के साथ किया है. लेकिन मोदी सरकार है कि उसकी बात पर कान ही नहीं दे रही है.
ऐसे में तवांग को लेकर चीन की बेचैनी आसानी से समझ में आती है.