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​तलवार और भालों से किया था गुर्जरों ने बंदूकों का सामना – 1824 का विशाल गुर्जर आंदोलन

गुर्जर आंदोलन

गुर्जर आंदोलन – भारत जब गुलाम था तब देश के अलग-लग जगहों पर देश को स्वतंत्र कराने के लिए आन्दोलनों का दौर चल रहा था.

दश के इतिहास में बड़े-बड़े आन्दोलन हुए लेकिन आज इतिहास की किताबों में वहीँआन्दोलन दर्ज हैं जिनके अंदर बड़े नेता या देश का खास एक परिवार शामिल था.

बहुत ही कम इतिहास की किताबें ऐसी हैं जहाँ 1857 से पहले के आन्दोलनों का जिक्र किया गया है.

जब हम आन्दोलनों को पढ़ना शुरू करते हैं तो हम राष्ट्रीय स्तर के आंदोलन तो पढ़ लेते हैं किन्तु क्षेत्रीय स्तर के आंदोलनों को पढ़ना भूल जाते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी गलती होती है. असल में अंग्रेजों की हुकूमत को राष्ट्रिय आन्दोलनों ने नहीं बल्कि क्षेत्रीय आन्दोलनों ने खोखला किया था.सन 1824 में देश के एक हिस्से में गुर्जर आंदोलन हुआ था और इस आंदोलन ने कुछ वैसा ही प्रभाव कायम किया था जैसा कि 1857 की क्रांति से उत्पन्न हुआ था. इन दोनों आन्दोलनों में बसफर्क इतना था एक आन्दोलन देश व्यापी हो गया था और एक आंदोलन निश्चित क्षेत्र तक फ़ैल कर थम गया था.

गुर्जर आंदोलन –

गुर्जर आंदोलन का सच्चा इतिहास

सबसे पहले यह जानना बेहद जरुरी है कि अंग्रेजों के खिलाफ 1757 से ही अलग-अलग जगहों पर विद्रोह चल रहे थे. भारतीय समाज ने शुरुआत से ही अंग्रेजों का विरोध किया था. सन 1824 मेंसहारनपुर, हरिद्वार और मेरठ में अंग्रेजों एक खिलाफ जबरदस्त विद्रोह चल रहे थे. अंग्रेजों ने इन आन्दोलनों को रोकने के लिए यहाँ छावनी तक बना रखी थी. सहारनपुर और हरिद्वार क्षेत्र में कुछ कस्बे ऐसे थे जहाँ गुर्जर वंश का साम्राज्य कायम था. हरिद्वार के पास आज जो रूडकी शहर है वहां पहले लंढौरा नाम का एक कस्बा काफी मशहूर था और यहाँ तब 804 गाँव थे. तब उस समय यहाँ लंढौरा, नागर, भाटी, जाटो की कुचेसर आदि जातियां राज कर रही थीं. अंग्रेज भली-भांति जानते थे कि यह जातियां कभी भी हमारे लिए खतरा बन सकती हैं. यही कारण था कि अंग्रेज इन लोगों कोकिसी भी हालत में खत्म कर देना चाहते थे.

यह बात कुछ उस समय की है जब अंग्रेजों को बर्मा के हाथों हार मिली थी और यहाँ के गुर्जरों को ऐसा लगने लगा था कि अब शायद इस बड़ी हार के कारण अंग्रेज डरे हुए हैं और यही समय है जब अंग्रेजों से देश को आजाद कराया जा सकता है. ऐसा बताया गया है कि तब गुर्जरों में एक बड़े ताकतवर नेता होते थे जिनका नाम राजा विजय सिंह था उन्होंने इस गुर्जर आंदोलन की कमान अपने हाथों में ली थी और देश को आजाद कराने के लिए तलवार और भालों से ही बंदूकों का सामना करने यह निकल गये थे.

मात्र 5 महीनों में हिला दिठी अंग्रेजों की जड़ें

आप अगर गुर्जर इतिहास को पढ़ते हैं तो आपको सन 1824 का विशाल गुर्जर आंदोलन पढ़ने को जरुर मिल जायेगा. इतिहास की पुस्तक कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जब आप पढेंगे तो आपको यहाँ लिखा नजर आएगा कि गुर्जरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गुर्जर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये. पश्चिमी उत्तर प्रदेशके गुर्जरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका था.

वैसे  ऐसा भी बताया जाता है कि यह विद्रोह कुछ 5 महीने चला था लेकिन इस समय में कई बार अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया गया था. 3 अक्तूबर 1824 का दिन इन शहीद स्वतंत्रता सेनानियों केलिए एक बुरा दिन था. जो आन्दोलन अब सहारनपुर और देहरादून तक फैलता जा रहा था वह अचानक से किसी खबरी के कारण रुक जाता है. अंग्रेजों ने इस दिन भारी सेना के साथ राजा विजय सिंहजिस किले में छुपे हुए थे वहां वहां हमला किया था. इन गुर्जरों ने शहीद होने से पहले तलवारों और भालों से ही अंग्रेजों का सामना किया था किन्तु एक समय बाद यह लोग संघर्ष करने में असफल होगये थे.

सन 1824 का यह गुर्जर आन्दोलन बेशक उस समय असफल हो गया था किन्तु यह आग जो इन वीर गुर्जरों ने लगे थी यह आग आगे चलकर 1857 की क्रान्ति में तब्दील भी हुई थी. आज भारतवर्षको इन वीरों की कहानियों को नई पीढ़ी के सामने लाने की आवश्यकता है ताकि इन कहानियों को पढ़कर यह साफ़ हो जाए कि भारत को आजादी मात्र कुछ लोगों के संघर्ष से नहीं मिली है और ना हीयह आजादी किसी परिवार की बपौती है.

(अधिक जानकारी के लिए आपको इतिहास की पुस्तक कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जरुर पढ़ लेना चाहिए. यह पुस्तक आपको सहारनपुर या गुर्जर वंश के इतिहास पुस्तकालय में में आसानी से मिल जाएगी.)