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लिफ्टों का कारवां

पूरा दिन ऑफिस में बैठे-बैठे संगणक पर नज़र गडाए हुए रहने से कमर जवाब दे जाती है.

फिर इसके बाद अगर आपको पांचवी-छठी या उससे भी ऊंची कोई मंजिल से सीढ़ियों के सहारे उतरना पड़े तो शायद आपका दिन और भी ज़्यादा भीषणतम साबित हो सकता है.

लाख-लाख शुक्रिया उस आदमी का जिसने लिफ्ट का आविष्कार किया. इसीलिए मैं कभी-कभी सोचता हूँ के लिफ्ट दुनिया के सबसे सार्थक आविष्कारों में से एक है.

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कितना सुकून प्राप्त होता है जब लिफ्ट में हम अकेले खड़े-खड़े दुनिया की सारी चिंता छोड़कर अंदर फैले सन्नाटे को सुनने की कोशिश में जुटे रहते हैं. कोई अपने बाल संवारता होता है या कोई लिफ्ट में लगे शीशे में अपनी तोंद की बढती आकृति को देखते-देखते उसको कम करने के नए-नए तरीके ढूंढता रहता हैं. लेकिन जब वही लिफ्ट, आगामी मंजिल पहुँचते ही खचा-खच भर जाती है तब ऐसा लगता है कि दुनिया का सारा सुकून भस्म हो गया हो!

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लिफ्ट में अचानक बहुत से लोग यूँ जमा हो जाते हैं जैसे शर्मा जी की बेटी की शादी में खाना खाने के लिए आये हैं.

जो व्यक्ति अपनी बढती तोंद को देख रहा था वह लम्बी सांस अंदर लेकर अपनी तोंद छिपाने की कोशिश में लग जाता है और जो व्यक्ति बाल संवार रहा होता है वह इस तरह हाथ नीचे कर लेता है जैसे फिर कभी अपनी ज़िन्दगी में अपने बालों को हाथ ही नहीं लगा पाएगा.
लिफ्टों में तरह-तरह के लोग देखने को मिलते हैं.

सबसे पहले तो ज़ोर-ज़ोर से बातें करनेवाले.
फिर…
हमेशा लिफ्ट की छत की ओर देखने वाले लोग

ज़रुरत से ज्यादा ज़ोर से गालियाँ देनेवाले लोग

और हमेशा डरे-डरे रहने वाले लोग जो लिफ्ट के किन्ही चार कोनों में से एक को ही पकडे खड़े रहते हैं.

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लिफ्ट मेरे ख्याल से एक तरह से ज़िन्दगी को दर्शाती है, है ना? जिस तरह हर मंजिल पर नए-नए लोगों का आना-जाना लगा रहता है ठीक उसी तरह ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर नए-नए लोगों से मिलना-जुलना लगा रहता है. लिफ्ट ही की तरह अजीब-ओ-गरीब लोगों से सजी हमारी ज़िन्दगी रुक-रुक कर भी चलती ही रहती है.

आज कल की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में लिफ्ट का बहुत बड़ा महत्व है. समय के मुताबिक़ और ज़्यादा चल ना पाने वाले लोगों के लिए लिफ्ट किसी वरदान से कम नहीं है. लिफ्ट का आविष्कार करने वाले को ज़रूरन जन्नत ही मिली होगी वरना “जा ज़ालिम दुनिया, नहीं तो मैं भी काफिर ही कहलौंगा!”

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