आपने अक्सर सुना होगा कि लोग कहते हैं कि पेट की आग बुझाने के लिए ही वह मेहनत मजदूरी कर रहा है.
उस वक्त आपके मन एक सवाल तो आता ही होगा कि क्या पेट में भी आग चलती है. और जब ये आग जलती है तो भूख कैसे लगती है.
आग और भूख का भला क्या संबंध. आपने जठराग्नि मतलब पेट की आग, केे बारे में सुना ही है. अब इसके बारे में जान भी लीजिए ये होती क्या है.
हाल ही में सामने आए एक शोध में पता चला है कि वास्तव में हमारे पेट में एक तरह की अग्नि होती है. ताजा शोध के अनुसार, भोजन करने के साथ ही हमारे पेट की आग जिसे जठराग्नि कहते हैं भड़क उठती है.
अब आप सोच रहे हैं जब पेट की आग जलती है तो हम सुरक्षित कैसे रहते हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह हमारे लिए हानिकारक नहीं बल्कि लाभकारी अग्नि है. यह अग्नि एक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करती है जो भोजन के साथ उदर में गए जीवाणुओं से लड़ने का कार्य करती है.
निष्कर्षो से पता चला है कि यह ‘अग्नि’ भारी शरीर वाले व्यक्तियों में नहीं होती है, जिससे मधुमेह होने का खतरा रहता है.
वहीं दूसरी तरफ स्वस्थ व्यक्तियों में अल्पकालिक प्रतिक्रिया के रूप में भड़की यह ‘अग्नि’ प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय में किए गए अध्ययन में पता चला है कि रक्त में ग्लूकोज की मात्रा के आधार पर मैक्रोफेजेज की संख्या एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाएं या अपमार्जक कोशिकाएं भोजन के दौरान आंत के चारों तरफ बढ़ जाती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि चयापचय की प्रक्रिया और प्रतिरक्षा प्रणाली जीवाणु और पोषकों पर निर्भर होती है. इन्हें भोजन के दौरान लिया जाता है.
शोध के मुख्य लेखक इरेज ड्रोर ने कहा कि पर्याप्त पोषक पदार्थो से प्रतिरक्षा प्रणाली को बाहरी जीवाणु से लड़ने में मदद मिलती है.
इसके विपरीत, जब पोषक पदार्थो की कमी होती है, तो कुछ शेष कैलरी को जरूरी जीवन की क्रियाओं के लिए संरक्षित कर लिया जाता है. इसे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की कीमत पर किया जाता है.
शोध पत्रिका ‘नेचर इम्यूनोलॉजी’ के ताजा अंक में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है.