हाल में एक ऐसा शोध आया है जिसके बाद लोगों की गंगा में आस्था और प्रगाढ़ हो जाएगी.
आपको बता दें कि शोध से पता चला है कि गंगाजल से कई बीमारियों का इलाज संभव है. गंगा जल के सेवन से निमोनिया, मस्तिष्क ज्वर के अलावा बर्न, घाव, सर्जरी व यूरिनल इन्फेक्शन आदि बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है.
हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) के वैज्ञानिकों की टीम ने पशुओं और इंसानों में निमोनिया, मस्तिष्क ज्वर के अलावा बर्न, घाव,सर्जरी व यूरिनल इन्फेक्शन का कारण बनने वाले क्लबसेला, स्यूडोमोनास, स्टेफाइलोकॉकस आदि बैक्टीरिया के चार बैक्टिरियोफाज (जीवाणुभोजी) को गंगा के जल से खोज निकाला है.
बताते चलें कि वैज्ञानिकों की टीम ने गंगाजल से मिले कुल आठ बैक्टिरियोफाज के अलावा विभिन्न स्थानों की मिट्टी व डंग आदि से 100 के करीब विभिन्न बैक्टिरियोफाज निकालकर एक फाज बैंक बना लिया है.
इतना ही नहीं क्लबसेला के फाज का चूहों पर सफल परीक्षण भी हो चुका है.
एनआरसीई के निदेशक डॉ. बीएन त्रिपाठी का दावा है कि करीब साढ़े तीन साल पहले वर्ष 2013 में केंद्र की वैज्ञानिक डॉ. तरुणा आनंद ने भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के डेवलपमेंट आफ बैक्टिरियोफाज रिपोजिटोरी विषय पर शोध शुरू किया.
इस शोध में संस्थान के अन्य वैज्ञानिक डॉ. बीसी बेरा और डॉ. आरके वैद्य भी लगे हुए हैं.
बताया जाता है कि शुरूआत में यह कार्य यूं तो घोड़ों और पशुओं पर ही हो रहा है, लेकिन काफी ऐसे बैक्टेरिया हैं जिनका असर इंसानों और पशुओं पर होता है जिनमें क्लबसेला प्रमुख है. इनके फाज भी इंसानों के लिए कारगर साबित होंगे.
गौरतलब है कि इस तरह का काम पोलैंड, नीदरलैंड, स्कॉटलैंड, चीन, कनाडा में चल रहा है और जियोर्जिया में तो फाज थैरेपी भी होने लगी है, लेकिन भारत में इतने बड़े स्तर पर यह पहला काम है.
एनआरसीई के वैज्ञानिकों ने अभी तक गढ़गंगा, गंगोत्री के अलावा वाराणसी के औड़िहार से लिए गए जल पर शोध किया है. अब हर की पौड़ी के जल व मिट्टी के अलावा अन्य स्थानों के गंगा जल पर भी शोध किया जाएगा.
यही कारण है कि भारतीय धर्म ग्रथों में गंगाजल की तुलना अमृत से की जाती है और इसको कितना पवित्र माना गया है, लेकिन अब यह भी साबित हो गया है. इसके पानी में कई बीमारियों का इलाज भी संभव है.