भारत की जेलों में मुसलमान कैदी की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है.
अब इसको लेकर सवाल भी उठने शुरू हो गए हैं कि आखिर क्या कारण है कि जनसंख्या अनुपात की तुलना में जेलों मुसलमान कैदी की संख्या अन्य समुदाय के मुकाबले अधिक है.
महाराष्ट्र के उदाहरण को ही ले तो राज्य में हर तीन में से एक मुसलमान कैदी है लेकिन राज्य की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा केवल साढ़े 11 फीसदी है. यही तस्वीर पूरे देश में दिखती है. अन्य राज्यों में भी जेलों में बड़ी संख्या में मुसलमान कैदी बंद हैं, जो आबादी के अनुपात क तुलना में कहीं अधिक है.
इसको लेकर सभी के अपने अपने तर्क है. मुसलमान नौजवान मानते हैं कि इसके पीछे एक संगठित सोच काम करती है. यानी मुसलमानों को जानबूझकर निशाना बनाया जाता है.
हालांकि इस मुद्दे पर विशेषज्ञों का कहना है केवल एक फीसदी कैदी ही आतंकवाद और संगठित अपराध जैसे गंभीर मामलों में जेलों में बंद हैं जबकि बाकी कैदी आम अपराधों के लिए वहां हैं.
अर्थात उनका कहना है कि उनके अपराध जमीन-जायदाद और पारिवारिक विवादों से जुड़े हुए हैं न कि संगठित अपराध की श्रेणी में आते हैं. मुस्लिम अपराधियों की बढ़ी संख्या के पीछे सरकार की तरफ से मुस्लिमों को लेकर होने वाला भेदभाव है.
लेकिन इसके उलट एक दूसरी तस्वीर भी है. इसके लिए मुसलमान भी कम दोषी नहीं है, क्योंकि बहुत से ऐसे मामले हैं जिनमें मुस्लिम बनाम मुस्लिम के झगड़े में ये लोग जेल जाते हैं. ऐसे में भेदभाव का सवाल कहां से पैदा होता है.
वहीं कुछ विशेषज्ञों का यह कहना कि संगठित अपराधों में उनकी भागेदारी मात्र एक प्रतिशत है सवाल का सही उत्तर नहीं है. यह तो आंकड़ों के आड़ में असल समस्या से मुंह चुराना हुआ. देखा गया है कि मुस्लिमों में अपराध के प्रति भारत ही नहीं विश्व में भी एक अजीब प्रकार का व्यवहार देखा गया है. इसके पीछे बड़ा परिवार और बेरोजगारी के कारण उनकी शिक्षा की समुचित व्यवस्था व माहौल न मिलना भी बहुत बड़ा कारण है. अधिकांश मुस्लिम परिवारों में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के प्रति वह रूझान नहीं है जो समुदाय में अक्सर देखा जाता है. शिक्षा के प्रति कम रूझान के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक कारण हो सकते हैं.
गौरतलब है कि सरकार ने हाल ही में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि भारत की 1387 जेलों में 82 हजार से ज्यादा कैदी मुसलमान हैं जिनमें से लगभग 60 हजार विचाराधीन कैदी हैं.
इसको लेकर मुस्लिम स्कालरों का कहना है कमजोर वर्ग के पास खुद को निर्दोष साबित करने के लिए कानूनी संसाधन नहीं होते हैं इसलिए भी जेलों में उनकी संख्या अधिक है.
जबकि इसको लेकर दूसरे पक्ष का यह कहना है कि गरीबी और अशिक्षा केवल मुसलमान में ही नहीं अन्य धर्मों में भी हैं. लेकिन वहां उस अनुपात में लोग अपराध की ओर नहीं जाते.
इसलिए गरीबी और अशिक्षा या भेदभाव एक कारण तो हो सकता है लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं हो सकती.