देश के बहु चर्चित रक्षा घोटाले यानी बोफोर्स घोटाला मामले में एक बार फिर नया मोड़ आया, जब सीबीआइ ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि रक्षा दलाली के इस मामले को आगे बढ़ने से रोका गया.
सीबीआइ ने बोफोर्स घोटाला मामले को दबाने में भले ही अपने हलफनामे में अपने ही आला अधिकारियों का नाम लिया हो लेकिन अदालत से लेकर सीबीआइ के ये अधिकारी भी जानते हैं कि उस वक्त तोता कीसकी भाषा बोल रहा था.
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सीबीआइ ने 11 साल बाद यह स्वीकार किया है कि हिंदूजा बंधुओं को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बोफोर्स घोटाला मामले में आरोप मुक्त किए जाने के खिलाफ उन्हें फैसले के खिलाफ अपील दायर करने से रोका गया था.
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ याचिकाकर्ता अधिवक्ता अजय कुमार अग्रवाल द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही है.
इसी सुनवाई के दौरान ही सीबीआई के अधिवक्ता ने खुलासा किया कि एजेंसी उस फैसले में अपील करने की अनुमति नहीं दी गई जिसमें हिंदुजा बंधुओं-श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाशचंद और एबी बोफोर्स कंपनी को आरोप मुक्त कर दिया गया था. ध्यान देने वाली बात है कि इसी फैसले को बाद में आधार बनाकर कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी के मित्र और इटली के व्यापारी क्वात्रोकी के विदेशों में सील खातों को खुलवाने में मदद की थी.
उस वक्त सीबीआइ द्वारा इस मामले में अपील न करने को आधार बनाकर ही स्विस बैंकों ने क्वात्रोकी के फ्रीज खातों को खोल दिया था. इस रक्षा सौदे की दलाली में राजीव गांधी का नाम भी आया था.
यह सब उस समय की कांग्रेस सरकार के इशारे पर काम किया था. क्योंकि इन खातों को खुलवाने के लिए कानून मंत्रालय की मंजूरी अनिवार्य होती है. बताया जाता है कि केंद्र की कांग्रेस सरकार चाहती थी कि इन खातों को खुलवा दिया जाए. लेकिन तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ऐसा करने को तैयार नहीं थे.
जब कांग्रेस के उस समय के कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने ऐसा करने से आना कानी की तो उनको मंत्रिमंडल से हटाकर कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया. इसके बाद क्वात्रोंकी के खातों पर भारत सरकार की ओर से विदेशों में लगाई गई रोक का रास्ता साफ हो गया. विदेशी बैंकों को भारत से नो ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट मिल गया.
इसको लेकर अधिवक्ता अजय कुमार अग्रवाल ने उस वक्त आरोप लगाया था कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती नहीं देने को तरजीह दी थी, जिसके खिलाफ उन्होंने एक याचिका भी डाली थी.
उनका कहना था कि उच्च न्यायालय का आदेश पूरी तरह गलत है. इसमें जो कारण बताया गया था वह गलत था. आदेश निरस्त किए जाने योग्य है. प्रथम दृष्टया यह गलत दलील पर आधारित था.
हालांकि उस वक्त उच्च न्यायालय ने 31 मई 2005 को हिंदुजा बंधुओं और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सारे आरोप निरस्त कर दिए थे और मामले से निपटने के तरीके को लेकर सीबीआइ को फटकार लगाई थी.
अदालत ने कहा था कि इससे सरकारी खजाने पर तकरीबन 250 करोड़ रूपये का बोझ पड़ा.
लेकिन एक बार फिर से यह मामला जिंदा हो गया है. सीबीआइ के खुलासे के बाद उम्मीद है कि अब बोफोर्स घोटाला फिर से आगे बढ़ सकेगा.