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क्या ‘धर्म’ ही ‘सबकुछ’ है?

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धर्म इंसान को क्या सिखाता है?

आपके पास कोई जवाब है? वैसे, मेरे पास इस सवाल का जवाब है.

सुनना चाहोगे? तो सुनो!

धर्म लोगों को नफरत करना सिखाता है, धर्म लोगों को यह सिखाता है कि कैसे दूसरे धर्म के लोगों को ज़बरन अपना धर्म अपनाने को कहो! धर्म हमें लड़ना सिखाता है, दोनों अच्छी और बुरी चीज़ों के लिए!

धर्म हमें दूसरों को शक़ भरी नज़रों से देखने को कहता है, धर्म हमें यह सिखाता है कि दुनिया में करोड़ों तरह के भगवान रहते हैं! आप लोगों को ये सब पढ़ कर भले ही बुरा लग रहा हो लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो अलग-अलग धर्म से, भले वह इस्लाम हो, ईसाई हो, हिंदू हो, सिख हो, सब यही सीख लेते हैं!

1993 बम ब्लास्ट, 1947 में भारत विभाजन, बाबरी मस्जिद केस!

सोचिये अगर ये काण्ड हुए ही न होते तो भारत में जातिवाद नाम की कोई चीज़ ही न होती! कितनी बड़ी विडंबना की बात है कि धर्म लोगों को प्रेम से मिलजुल कर रहना सिखाता है लेकिन लोग उसी धर्म के आधार पर दंगे-फसाद करते हैं!

क्या यह बात सही है?

वैसे मेरे पास सही गलत का फैसला करने का कोई हक़ नहीं है! भगवान के पास यह हक़ है! आप अपने-अपने भगवान से यह पूछ कर तो देखिए!

आपको अपने आप जवाब मिल जाएगा!

भारत के बड़े-बड़े शूरवीर नास्तिक थे! यकीन नहीं होता! नीचे कुछ ऐसे लोगों के नाम हैं जो सारे भारत में प्रख्यात हैं लेकिन नास्तिक हैं!
1. शहीद भगत सिंह
2. बाबा साहेब आंबेडकर
3. खुशवंत सिंह
4. सलमान रश्दी
5. राम मनोहर लोहिया
6. चंद्रशेखर वेंकट रमण
7. जवाहरलाल नेहरू

ये तो महज़ 7 लोगों के नाम थे!

ऐसे कई नास्तिक हैं जिन्होंने महानता प्राप्त की है!

उन्होंने ऐसा किसी भी धर्म के सहारे नहीं किया!

मेरा कहना है कि उनका अपना धर्म था! किसी का, ‘देश’ धर्म था! किसी का ‘मानवता’ और किसी का धर्म ‘कला’ था!

आप एक इंसान का चरित्र, उसके धर्म के आधार पर निर्धारित नहीं कर सकते हैं! आप गीता पढ़ लीजिए, आप महाभारत और रामायण पढ़ लीजिए! आप वेद पढ़ लीजिए, किसी भी हिंदू धर्मग्रंथ में मुसलामानों की प्रवृत्ति के बारे में कोई भी चीज़ नहीं लिखी है! आप क़ुरान पढ़ लीजिए! हिंदुओं की प्रवृत्ति के बारे में कहीं कुछ नहीं लिखा है! सभी धर्म एक पेड़ की अलग-अलग शाखाएं हैं! सच और झूट का फैसला एक ही  महान आत्मा करेगी!

आपने बचपन से यह बात सुनी होगी कि हर धर्म, ‘प्रेम से रहना’ और ‘सभी लोगों की इज्ज़त करना सिखाता है’ लेकिन आज के समय को देखते हुए ऐसा बिलकुल प्रतीत नहीं होता है!

धर्म गुरू और राजनेता, ये सभी धर्म को कंधा बनाकर उसपर जातिवाद की बंदूख रखकर गोलियां चलाते हैं जिससे केवल गरीब आदमी ही ज़ख़्मी होता है!

इस देश की जनता को इस बात का फैसला करना पड़ेगा की क्या उनके उज्जवल भविष्य के लिए उनका धर्म ज़िम्मेदार होगा या वे खुद!
मुझे जो कहना था वह मैंने कह दिया! धर्म क्या सिखाता है और लोग क्या सीखते हैं ये सब आप खुद अपनी आँखों से रोज़ देखते हो!

नीचे कमेंट कर के आप इस विषय पर अपनी राय दीजिए! आपको क्या लगता है? क्या धर्म ही सबकुछ है?