समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव जिस प्रकार मुख्यमंत्री को चित करने पर तुले हैं उसको देखकर तो हर कोई यही कह रहा है कि उत्तर प्रदेश के सियासी दंगल में बेटे अखिलेश यादव के लिए पापा मुलायम सिंह यादव हानिकारक साबित हो रहे हैं.
सपा सुप्रीमों इन दिनों जिस प्रकार के सियासी दांव चल रहे हैं उसको देखते हुए किसी को भी इस बात का अहसास नहीं था कि यादव परिवार में एक दिन ऐसा भी आएगा जब पापा मुलायम उस बेटे को, जिसको कि उन्होंने अपने भाई शिवपाल को नाराज़ करके मुख्यमंत्री बनवाया था, उसको ही पार्टी से बेदखल करने के लिए आगे आयेंगे.
गौरतलब हो कि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एक बड़ा फैंसला लेते हुए अपने बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था. लेकिन बाद में एक रणनीति के तहत अखिलेश का निष्कासन तो वापस ले लिया लेकिन रामगोपाल का नही हुआ.
बहुत कम लोगों को ही मालूम होगा कि समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव एक जमाने में अखाड़े में कुश्ती किया करते थे. लेकिन इस बार दांव चलते समय मुलायम सिंह यादव से चूक हो गई. वे यह भूल गए कि एक तो अखाड़े में उतरने की उनकी अब उम्र नहीं है दूसरे जिसके साथ वे दांव लगा रहे हैं वह उनका ही बेटा हैं.
बहराल, जो भी हो लेकिन इतना तो साफ है कि बेटे को सियासी पटखनी देने के लिए पापा मुलायम जो भी दांव इस समय चल रहे हैं उससे अखिलेश को आगामी विधान सभा चुनावों में नुकसान तो होने वाला ही है. जानकारों का मानना है कि मुलायम सिंह जिस प्रकार भाई शिवपाल तथा अपनी दूसरी पत्नी और बेटे के लिए अखिलेश को पार्टी में पहले बेइज्जत और अब बेदखल करने पर तुले हुए हैं वह बेटे अखिलेश ही नहीं बल्कि दूसरी पत्नी के बेटे प्रतीक के लिए भी हानिकारक है.
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव दीवार पर लिखी इबारत पढ़ नहीं पा रहे हैं. उनके इस कदम से दूरियां इतनी बढ़ जाएंगी कि उन्हें पाटना भविष्य में संभव नहीं होगा. वहीं दूसरी ओर विधान सभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की इस आंतरिक जंग का मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बहुत नुकसान होने वाला है. क्योंकि मौजूदा स्तिथि में समाजवादी पार्टी की आपसी खींचतान में पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल भी कानूनी पचड़े में फंस सकता है.
अगर ऐसा हुआ तो मुलायम सिंह के इस कदम से चुनावों में लाभ भाजपा व बसपा को मिलना तय है.
भाजपा और बसपा पूरे घटनाक्रम पर निगाह लगाए हैं. बसपा प्रमुख मायावती सपा में मचे घमासान से अखिलेश और समाजवादी पार्टी के कमजोर हो जाने को बसपा के हित में मान रही हैं.
उनको लगता है कि मुस्लिम भाजपा को हाराने के लिए बसपा के पक्ष में लामंबद हो सकते हैं.
उधर, भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि समाजवादी पार्टी की बढ़ी अंतरकलह से मुस्लिम वोट भ्रमित होगा और इसका पूरा चुनावी फायदा भाजपा के खाते में जाएगा.
बहराल, इस सियासी दंगल को देखकर अखिलेश यादव कि जुबां से भी यही निकल रहा होगा है कि बापू तू हानिकारक है कुर्सी के लिए.