पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाओं, पुरुलिया से एक लड़का भाग के आया, बिना यह सोचे समझे की आगे क्या करना है?
ऐसा ही एक लड़का था विक्की रॉय जिसने अपने जीवन की शुरुआत रेलवे स्टेशन पर कचरा उठाने से की थी लेकिन आज वो एक विख्यात फोटोग्राफर है.
केवल 11 वर्ष की उम्र में, अपने माँ और नानी के व्यवहार से तंग आकर जेब में सिर्फ 900 रुपये लेकर दिल्ली स्टेशन पहुँच गया. कुछ दिनो के लिये दिल्ली स्टेशन ही उसका घर बन गया था. कई दिनो तक उसने दिल्ली स्टेशन पर कचरा बीनने का काम किया और बहुत से लोगों से मार भी खाई. इसके बाद उसने कुछ दिनो के लिये एक होटेल मे बर्तन धोने का भी काम किया.
कुछ समय बाद दिल्ली के एक गैर सरकारी संस्था, सलाम बालक ट्रस्ट वह संस्था है जो सड़क पर लावारिस बच्चों के सुधार के लिये काम करती है. सलाम बालक के कुछ स्वयं सेवक, विक्की रॉय से मिले और उन्होने उसे समझाया कि उसे यहाँ नहीं बल्कि स्कूल में होना चाहिये और उसे सलाम बालक ट्रस्ट लेकर आया गया. लेकिन कुछ समय बाद रॉय ने वहां से भागने का फैसला किया क्यूंकि वह जगह पूरी तरह से बंद थी और रॉय के आज़ाद खयालातों के उलट थी.
लीकिन कुछ समय बाद उसने वापस आकर ट्रस्ट द्वारा दूसरी संस्था ‘अपना घर’ मे रेहना शुरू किया और यही उसने 10 वी कक्षा की परीक्षा भी दी. परीक्षा में कम नंबर आने की वजह से रॉय को ओपन स्कूल जाने की सलाह दी गयी.
इसी दौरान रॉय की मुलाक़ात एक ब्रिटिश फिल्मकार डिक्सी बेंजामिन से हुई जो उस वक़्त सलाम बालक ट्रस्ट पर डॉक्युमेंटरी बना रहे थे. रॉय को अंदाज़ा भी न था कि कैसे उसकी ज़िंदगी एक अलग मोड लेने वाली है.डिक्सी बेंजामिन ने उसे उनकी डॉक्युमेंटरी के लिये असिस्ट करने का मौका दिया और यह रॉय के लिए उसकी ज़िंदगी का नया पड़ाव साबित हुआ. उन्होने रॉय को फोटोग्रफी के बारे में मूल बातें समझाई जैसे अपर्चर, डेप्थ ऑफ फील्ड और शटर के बार में. उन्होने रॉय को अपना एक कैमरा भी सुपुर्द किया जिससे वह अपनी इस कला को और बेहतर तरीके से निखार सके.
इसके कुछ समय बाद 18 साल की उम्र में रॉय ने दूसरे प्रसिद्ध फोटोग्राफर अनय मान को असिस्ट करना शुरू किया. उनके साथ मिलकर उन्होने कई प्रॉजेक्ट्स पर मिलकर काम किया और फोटोग्रफी और ज़िंदगी के बारे में बहुत बारिकी और नज़दीकी से जानना शुरू किया. कई अंतर्राष्ट्रीय एक्सिबिशन में रॉय के छाया चित्रों को चुना गया और साथ ही सराहा भी गया. वर्ष 2009 में, मापच फाउंडेशन द्वारा एक प्रतियोगिता में रॉय की तस्वीरों को चुना गया. इसमे महत्वपूर्णा बात येह है की पूरे विश्वा में 4 तस्वीरों को चुना गया था और इनमें से एक तस्वीर विकी रॉय कीट थी. इसके साथ ही उसे इंटरनॅशनल फोटोग्राफर असोसियेशन द्वारा न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के पुनः बनने की तस्वीरें खीचने का अवसर भी प्राप्त हुआ वो भी पूरे 6 महीनों के लिये.
कई राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय प्रॉजेक्ट्स करने के बाद और अपार सफलता पाकर विकी रॉय ने वापस उसकी संस्था अपना घर लौटने का फैसला किया. इसके साथ उन्होने, ‘स्ट्रीट ड्रीम्स’ नामक अपने खुद के प्रॉजेक्ट पर भी काम किया और सड़क पर रह रहे बच्चों के जीवन को अपनी तस्वीरों में उतारा.
2013 में रॉय ने नेशनल जियोग्रॅफिक की एक फोटोग्राफी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और उसमें उनहोंने अंतिम 4 में अपनी जगह बनाई.
अनेक उपलब्धियों के बाद, रॉय आज भी अपनी जड़ों से जुड़ें हुए हैं. और उनका एक सपना है कि वो अपने गांव पुरुलिया में अपना एक घर बनाना चाहते हैं.
कुछ ऐसी ही कहानियाँ होती हैं जो आपको पूरी तरह से अचंभित कर देती हैं.