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चीन के बाद अब इस देश ने लगाई अजान पर लगाम

नमाज की अजान

चीन के बाद अब इजराइल ने भी अपने यहां मुस्लिम धार्मिक गतिविधियों को नियंत्रित करने का फरमान जारी कर दिया है.

इजराइल ने अपने यहां जिस नए बिल को तैयार किया है उसके पास होने के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग लाउडस्पीकर लगाकर वहां पर मस्जिदों में नमाज की अजान नहीं लगा पाऐंगे. इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मस्जिदों के लाउडस्पीकरों की आवाज सीमित करने वाले बिल को अपनी मंजूरी दे दी है.

गौरतलब है कि इसके पूर्व चीन ने अपने यहां नमाज की अजान पर प्रतिबंध लगा रखा है.

वहां भारत व अन्य देशों की तरह मस्जिदों से नमाज की अजान की आवाज लोगों को नहीं सुनाई पड़ती है. इतना ही नहीं 12 अक्टूबर को चीन सरकार ने जो नई शिक्षा नीति की घोषणा की है उसके अनुसार अगर कोई मां-बाप या अभिभावक अपने बच्चों पर धार्मिक चीजों को थोपता पाया जाता है तो उसको गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाएगा.

दरअसल, पिछले दो दशको से दुनियां के कई गैर मुस्लिम देशों में जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय में इस्लाम को लेकर कट्टरपन और उग्रता आई है उससे वहां पर समस्या खड़ी हो रही है. इस्लामी चरमपंथी मस्जिदों का उपयोग धार्मिक कार्य के अलावा अपना वर्चस्व दिखाने के लिए करने लगे हैं, जिसके कारण वहां के स्थानीय धार्मिक स्वतंत्रता तक प्रभावित हो रही है.

इसी प्रकार की समस्या चारों ओर मुस्लिम देशों से घिरे इजराइल के सामने भी आ रही थी. इजरायली मीडिया के मुताबिक वहां सरकार ने इसको लेकर एक बिल पास किया है जिसके पास होने के बाद मस्जिदों में नमाज की अजान पर रोक लग जाएगी. बिल को पास कराने को लेकर नेतन्याहू का कहना है कि इजरायली नागरिक बहुत लंबे समय से प्रार्थनास्थलों में होने वाले शोर-शराबे से परेशानी की शिकायत करते आ रहे थे. उसको देखते हुए इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी.

हालांकि, ड्राफ्ट बिल में सभी पूजास्थलों का जिक्र किया गया है, केवल मस्जिदो पर ही उसमें रोक लगाने की बात नहीं है. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि यह बिल विशेष रूप् से मुस्लिम समुदाय को टारगेट करने के लिहाज से तैयार किया गया है.

गौरतलब है कि इजरायल की जनसंख्या में 17.5 प्रतिशत अरब आबादी है. इनमें से अधिकांश मुस्लिम हैं. मुस्लिम समुदाय हमेशा से इजरायल में बहुसंख्यक यहूदियों पर भेदभाव का आरोप लगाता रहा है. जबकि इजराइल फिलीस्तीन विवाद के कारण इजराइल अपने यहां मुस्लिम धार्मिक गतिविधियों को लेकर सतर्क रहता है.

एक ओर जहां इजराइल में अधिकांश लोग इसका समर्थन कर रहे हैं तो वही इजरायल डिमॉक्रेसी इंस्टीट्यूट नाम के थिंक टैंक ने इस प्रस्ताव के खिलाफ आवाज उठाई है.

उनका कहना है कि इस बिल को लाने का मकसद शोर-शराबे से बचना नहीं है बल्कि अरब और यहूदियों के बीच के फर्क को बढ़ाना है.

अगर ऐसा है तो आने वाले समय में दोनों समुदाय के बीच तनाव में बढ़ोतरी होगी.