एक समय में भारतीय जनता पार्टी के थिंक टैंक के.एन. गोविन्दाचार्य होते थे.
पिछले कुछ समय से गोविन्दाचार्य जैसे भारतीय राजनीति से गायब ही थे लेकिन इस बार गोविन्दाचार्य अपने ही अंदाज में एक बार फिर से वापसी कर रहे हैं. कहते हैं कि के.एन. गोविन्दाचार्य जिस काम को अपने हाथों में लेते हैं उसे अंजाम तक पंहुचा ही देते हैं.
तो इस बार भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री के.एन. गोविन्दाचार्य गाय के मुद्दे को लेकर 7 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर मौजूद रहने वाले हैं.
क्या है इस आन्दोलन की रुपरेखा?
बीते दिनों दिल्ली के अन्दर हुई गोविन्दाचार्य की एक प्रेस वार्ता में जो मुख्य बातें बताई गयी हैं वह कुछ इस प्रकार से हैं-
7 नवंबर 1966 को संसद के सामने विशाल गोरक्षा आंदोलन हुआ था. इसमें भारत में उपजे सभी धर्म-संप्रदायों के प्रमुख धर्माचार्य और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता शामिल हुए थे. दुर्भाग्य से आंदोलन पर गोलियां चली और सैकड़ो गौ-भक्त शहीद हुए थे. गोली कांड के पश्चात् अनेक संतों ने अनिश्चितकालिन समय तक भूख हड़ताल भी की थी. तब भी संतों की प्रमुख मांग संपूर्ण गोहत्या बंदी कानून बनाना था.
7 नवंबर 2016 को 1966 की बलिदान को 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इन 50 सालों में बलिदान हुए गो-भक्तों की प्रमुख मांग पूरी नहीं हो पाई और गौरक्षा भी एक प्रकार से चुनावी जुमला बनकर रह गया है. 1966 में गोलिकांड में बलिदान हुए सैकड़ो गोभक्तों को श्रद्धाजंली देने और फिर से गोरक्षा का संकल्प लेने के लिए आगामी 6, 7, 8 व 9 नवंबर को विविध कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है.
कौन-कौन बड़े चेहरे हो रहे हैं इस गोरक्षा आंदोलन में शामिल –
7 नवंबर का कार्यक्रम दिल्ली के जंतर-मंतर पर हो रहा है. केंद्र की मोदी सरकार के लिए मुख्य समस्या इस कार्यक्रम में शामिल हो रहे लोग हैं. यहाँ पर आप एक ही मंच पर सनातन धर्म के प्रमुख संतों और हिंदुत्व के बड़े नेताओं को देख सकेंगे. पुरी के शंकराचार्य पूज्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी, पथमेड़ा गोधाम के पूज्य स्वामी दत्तशरणानंद जी महाराज, मलूकपीठ के स्वामी राजेंद्र दास जी प्रमुख संत होंगे और वहीँ गोरक्षपीठ के प्रमुख योगी आदित्य नाथ, डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी, आरिफ मुहम्मद खान और विजय साई रेड्डी भी गाय की रक्षा के लिए हुंकार भरते हुए देखे जा सकेंगे.
मोदी सरकार की मुख्य चिंता –
इस पूरे गोरक्षा आंदोलन को लेकर प्रधानमन्त्री मोदी इसलिए चिंतित हैं क्योकि वह जानते हैं कि इस गोरक्षा आंदोलन के पीछे थिंक टैंक के.एन. गोविन्दाचार्य मौजूद हैं. देशभर के गौ-रक्षक अभी मोदी के उस ब्यान से भी खफा हैं जिसमें उन्होंने गौ-भक्तों को फर्जी बताया था. मोदी सरकार चाहती थी कि खुद प्रधानमन्त्री सबसे पहले अपने उस ब्यान की भरपाई करें. लेकिन जिस तरह से अब गौ-हत्या बंदी के लिए यह पूरा गोरक्षा आंदोलन शुरू हो रहा है उससे तो सरकार और मुसीबत में फंसने वाली है. गाय के मुद्दे पर यदि सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती है तो देश के एक बड़े हिन्दू वर्ग में गलत सन्देश जायेगा.
वहीँ दूसरी तरफ सरकार इस गोरक्षा आंदोलन को रोक भी नहीं सकती है. तो इस तरह से गाय का यह मुद्दा सरकार के गले की फाँस बनता दिख रहा है. अब देखने वाली बात यह होगी कि मोदी के गुरु गोविन्दाचार्य गाय के मुद्दे पर सरकार को किस तरह से घेर पाते हैं.