भारत के सिर का ताज और धरती का स्वर्ग जम्मू-कश्मीर आज भारत का अभिन्न हिस्सा है.
भारत इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता है जबकि पाकिस्तान हर हाल में इसपर कब्ज़ा जमाना चाहता है.
जम्मू-कश्मीर आज़ादी के पहले से ही काफी विवादों में रहा है. आज़ादी के पहले से ही पाकिस्तान इस पर अपना अधिकार जमाना चाहता था.
लेकिन यहां गौर करनेवाली बात यह है कि जम्मू-कश्मीर अगर आज भारत का एक अभिन्न अंग है, तो इसका सारा श्रेय एक ही शख्स को जाता है और वो हैं जम्मू-कश्मीर रियासत के आखरी राजा हरि सिंह.
राजा हरि सिंह का जम्मू-कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक फैसला
राजा अमर सिंह के पुत्र राजा हरि सिंह ने 1925 में जम्मू-कश्मीर रियासत की बागडोर अपने हाथ में ली. राजगद्दी पर बैठने के बाद राजा हरि सिंह ने अपनी इस रियासत से वेश्यावृत्ति, बाल-विवाह, अशिक्षा जैसी कई कूप्रथाओं का नामोनिशान मिटा दिया.
राजा हरि सिंह के बारे में यह अफवाहें भी फैलाई गई कि वो जम्मू-कश्मीर को एक अलग देश के रुप में देखना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुए आज़ादी के करीब दो महीने बाद 26 अक्टूबर 1947 को अपनी रियासत को भारत का हिस्सा बनाने का अहम फैसला लिया और विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग घोषित किया.
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय से ठीक पहले इस रियासत पर कबालियों के रुप में पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर उसके काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया था.
जम्मू-कश्मीर को पाक के हवाले करना चाहती थी अंग्रेज सरकार
ब्रिटेन सरकार हर हाल में जम्मू-कश्मीर रियासत पाकिस्तान को देना चाहती थी. लेकिन भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत वो सिर्फ ब्रिटिश भारत का विभाजन कर सकती थी, भारतीय रियासतों के विभाजन का हक उसके पास नहीं था.
हालांकि पाकिस्तान में शामिल होने के लिए राजा हरि सिंह पर काफी दबाव डालने की कोशिश की गई. इसके लिए माउंटबेटन 15 अगस्त से दो महीने पहले श्रीनगर भी गए थे, लेकिन राजा हरि सिंह अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे.
राजा हरि सिंह अपनी रियासत को भारत में न मिला दे, इसलिए अंग्रेजी हुकूमत ने 15 अगस्त तक भारत और पाक की सीमा की घोषणा नहीं की और अस्थायी तौर पर गुरदासपुर जिले को पाकिस्तान की सीमा में घोषित कर दिया. लेकिन जब सीमा आयोग की रिपोर्ट आई तो पता चला कि शंकरगढ़ तहसील को छोड़कर पूरा गुरदासपुर ज़िला भारत के हिस्से में ही था.
पाकिस्तान में शामिल होने से राजा हरि सिंह ने किया कई बार इंकार
माउंटबेटन ने राजा हरि सिंह को प्रलोभन दिए, जब इनसे भी काम नहीं बन सका तो फिर चेतावनी भरे शब्दों में हरि सिंह को कहा कि वो किसी भी हाल में पाकिस्तान में अपनी रियासत को शामिल कर ले. लेकिन हरि सिंह अपने फैसले पर अटल रहे और जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करके उन्होंने अपनी देशभक्ति का परिचय दिया.
राजा हरि सिंह ने ऐतिहासिक फैसले के ज़रिए अपनी देशभक्ति का सिर्फ परियच ही नहीं दिया बल्कि जम्मू-कश्मीर के विलय के बाद, अपनी रियासत भारत सरकार के हवाले करके वो मुंबई आ गए और उनके जीवन का आखिरी दौर मुंबई की अंधेरी गलियों में गुज़रा.
बहरहाल राजा हरि सिंह के बारे में इतिहास में कहा जाता है कि वो अपनी रियासत को कभी भी भारत या पाकिस्तान के साथ विलय नहीं करना चाहते थे बल्कि उसे एक अलग देश के रुप में देखना चाहते थे.
लेकिन आज हकीकत सबके सामने है क्योंकि जम्मू-कश्मीर पर सिर्फ और सिर्फ भारत का अधिकार है.