बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती को हाथी से बहुत प्रेम है.
दरअसल, यह हाथी उनकी पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी का सिंबल है. यही वजह है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और नोएडा में जो पार्क बनवाए हैं उनमें हाथी की मूर्तियां भी लगावाई है.
लेकिन अब उनके प्रिय हाथी को उनसे छीनने की तैयारी हो रही है.
यह तैयारी करने वाला कोई और नहीं है बल्कि एक समय उनके साथ राजनीति पगडंडिया नापने वाले आरपीआई नेता रामदास अठावले हैं. महाराष्ट्र के दलित नेता इस बार केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री है.
उनका दावा है कि वे भाजपा के साथ मिलकर मायावती से हाथी छीन लेंगे.
क्योंकि बहुत पहले यह हाथी उनका साथी हुआ करता था. उत्तर प्रदेश में एक समय जब रामदास अठावले और कांशीराम ने मिलकर चुनाव लड़ा था तो उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी ही था. बसपा के बनने के बाद यह हाथी उनको दे दिया गया था कि वे दलितों के लिए संघर्ष करेंगी. अब जैसे जैसे उनका आधार खिसक रहा है तो समय आ गया है कि मायावती के स्थान पर उनकी पार्टी आरपीआई को मौका मिले.
आरपीआई इस चुनौती के लिए तैयार है और भाजपा के साथ मिलकर वह इस बार बसपा से हाथी को छीन लेगी.
उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में जिस प्रकार बहुजन समाजवादी पार्टी का पतन हो रहा है उसको देखते हुए लगता है कि दलितों का उनसे मोह भंग हो रहा है. उत्तर प्रदेश में बसपा का आधार रहा दलित वोट बैंक धीरे धीरे खिसक रहा है.
वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव में उनका वोट प्रतिशत पिछली बार की तुलना में और कम हुआ है.
अठावले का कहना है कि दिनोंदिन यह प्रतिशत जिस प्रकार गिर रहा है उसको देखते हुए मायावती को बीजेपी के साथ आ जाना चाहिए.
मायावती चाहेंगी तो वह मोदी से उनकी बात करा देंगे.
बहराल, ये तो आने वाले चुनाव में ही पता चलेगा कि रामदास अठावले उत्तर प्रदेश में मायावती से उनका हाथी छीन पाते हैं या नहीं और मायावती अपने हाथी को खूंटे से बांध रखने में कितना सफल हो पाती हैं .