त्रेता युग में जब राम सीता का जन्म मानव रूप में हुआ था, तब राजा दशरथ के पिंडदान के वक़्त ऐसी घटना हुई थी कि माता सीता ने वहां उपस्थित लोगो से झूठ बोलने वाले को ऐसा श्राप दिया था, जिसका प्रभाव आज भी उन पर दिखाई देता है.
आइये जानते हैं आखिर क्या हुआ था और किस किसको मिले थे सीता माता के श्राप –
सीता माता के श्राप –
- राजा दसरथ की मृत्यु के बाद भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ पिंडदान की सामग्री लेने गए थे और पिंडदान का समय निकलता जा रहा था. तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए, अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान उसी समय पर राम-लक्ष्मण की उपस्थिति के बिना किया.
- माता सीता ने अपने ससुर का पिंडदान पुरी विधि विधान के साथ किया था.
- जब भगवान राम लौट कर आये और पिंड दान के विषय में पूछा तब माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान समय पर करने की बात कही और वहां पिंडदान के समय उपस्थित साक्षी पंडित, गाय, कौवा, और फल्गु नदी को पूछने के लिए कहा.
- भगवान राम ने जब इन चारो से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा, तब चारो ने झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया.
- ये सुनकर माता सीता ने इन चारो को झूठ बोलने की सजा देते हुए ,आजीवन श्रापित कर दिया.
- पंडित को श्राप दिया कि सारे पंडित समाज को श्राप मिला कि पंडित को कितना भी मिलेगा उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी.
- फाल्गु नदी के लिए श्राप था – कितना भी पानी गिरे लेकिन नदी ऊपर से सुखी ही रहोगी नदी के ऊपर कभी पानी का बहाव नहीं होगा.
- कौवे को कहा – अकेले खाने से कभी पेट नहीं भरेगा और आकस्मिक मौत मरेगा.
- गाय को ये कहकर श्रापित किया – हर घर में पूजा होने के बाद भी तुमको लोगो का जूठन खाना पीना पड़ेगा.
- सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का प्रभाव आज भी इन चारो में देखा जा सकता है.
ये थे सीता माता के श्राप – सीता माता के इन श्रापों की वजह से इन चारों के समाज आज भी श्रापित अवस्था से गुज़र रहे है.
आज भी ब्रम्हाण को कितना भी दान मिले लेकिन उसके मन में दरिद्रता बनी रहती है, गाय पूजनीय होकर भी हर घर का जूठा खाना खाती है, फाल्गु नदी हमेशा सुखी हुई रहती है, और कौआ अपना पेट भरने के लिए झुण्ड में खाना खाता है और उसकी आकस्मिक मौत ही होती है.