एक समय भारत में ऐसा था जब हिन्दू-मुस्लिम दोनों मिलकर एक दूसरे का त्यौहार मना रहे होते थे.
मुसलमान ख़ुशी-ख़ुशी दीवाली में शामिल होते थे और हिन्दू ईद का जश्न मना रहे होते थे. लेकिन जब अंग्रेज भारत में आये तो इन्होने यह भाईचारा खत्म करने की ठान ली थी.
असल में यह भाई चारा अंग्रेजों के कारण नहीं खत्म हुआ है.
यह भाईचारा अगर आज खत्म हुआ है तो उसका कारण हम ही हैं. आज हम आपको बताने वाले हैं कि आखिर ऐसा क्या उपाय है कि जिसके कारण हिन्दू-मुस्लिम फिर से एक बार भाई-भाई बन सकते हैं. यह उपाय ऐसा है कि कभी भी हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा भारत में फिर कभी नहीं होगा.
उपाय से पहले आइये, कुछ हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल पढ़ते हैं –
वैसे आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम कर रहे हैं लेकिन हमारा मीडिया इनको दिखाना नहीं चाहता है. इसी क्रम में आइये दो व्यक्तियों के बारें में पढ़ते हैं-
रायपुर के राजा तालाब पंडरी निवासी साठ वर्षीय केंवटदास बैरागी एक हिन्दू हैं और पिछले 12 वर्षों से रमजान के मौके पर आधी रात को उठकर सेहरी के लिए मुस्लिमों को जगाने निकलते हैं. वे रात 2 बजे उठते हैं और सफेद कुर्ता, पायजामा पहनकर, सिर पर पगड़ी बाँधकर ढोलक बजाते नात-ए-पाक गाते हुए निकलते हैं. इस व्यक्ति को सभी मुसलमान अपना भाई समझते हैं.
ऐसा ही एक महान नाम है मोहम्मद फैज खान. मोहम्मद फैज़ खान सालों से गाय के महत्त्व को लोगों के जन-जन तक पंहुचा रहे हैं. असल में गाय का जितना ज्ञान हमको नहीं है, उससे कहीं ज्यादा ज्ञान फैज खान को है. मुस्लिम समाज भी इनको काफी इज्जत देता है और हिन्दू लोगों के लिए तो फैज खान काफी आदरणीय हैं.
तो असल में अभी तक जो भारत चल रहा है, वह इसी तरह के लोगों की वजह से चल रहा है. ऐसे नाम और भी हैं जो हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जी-जान लगाये हुए हैं.
लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकता का उपाय एक ही है.
सदियों से यह कोशिश हो रही है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता फिर से स्थापित हो जाये लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. आज हम आपको इस समस्या का पक्का हल बताने वाले हैं. इस समस्या का एक ही पक्का हल है कि दोनों धर्म के लोग आपस में रोटी और बेटी का रिश्ता जोड़ने लगें.
आजकल युवा लोग प्यार करके शादियाँ तो कर रहे हैं लेकिन जिस दिन घर वाले हिन्दू लड़के के लिए मुस्लिम बहु लाने लगेंगे और मुस्लिम लोग हिन्दू लड़की को अपनी बेटी बनाने लगेंगे, उसी दिन यह हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित हो जाएगी.
आजकल अपने फायदे के लिए, धर्म के लोग प्यार को भी झूठा बना रहे हैं.
लेकिन हिन्दू-मुस्लिम लोगों को समझना होगा कि प्यार झूठा नहीं हो सकता है. मुस्लिम बहु को अपनी बेटी की तरह रखना है और मुस्लिमों को भी हिन्दू लड़की के साथ ऐसा ही व्यवहार करना होगा. जब बेटी और रोटी दोनों का आदान-प्रदान होगा, तो दावे से बोला जा सकता है कि उसी दिन दंगे और नफरत की आग बुझने लगेगी.
तो अंत में फैसला आपके हाथ में है कि आप हमेशा नफरत की आग में जलना चाहते हैं या प्रेम की खुशबू से आप महकना चाहते हैं.
कल्पना कीजिये कि अगर मुस्लिम बेटी एक हिन्दू घर में जाएगी तो वह अपने साथ संस्कृति और रीति-रिवाज भी लाएगी. ऐसा ही कुछ मुस्लिम घरों में भी होगा.
ऐसा अगर होता है तो हिन्दू लोग रमजान मनाते और मुस्लिम लोग नवराते मनाते हुए देखे जायेंगे.
यही भारत की संस्कृति और रीति-रिवाज होते थे जो आज शायद कहीं खो गये हैं.