भारत के हर क्षेत्र और हर प्रान्त में कन्या भ्रूण ह्त्या होती है.
बेटियों को बोझ समझी जाती है. भारत में बेटी के जन्म पर बहुत कम घरों में खुशियाँ मनाई जाती है. कई घरो में मातम मनाने जैसा माहौल देखने को मिलता है.
अनेक जगह पर बेटी के जन्म से पहले ही या जन्म के तुरंत बाद बेटी मार दी जाती है. यही कारण है कि आज समाज में महिलाओं का अनुपात पुरुषों से बहुत कम है. जो समाज के लिए खतरा बनते जा रहा है. इसलिए भारत के हर क्षेत्र में आज बेटी बचाओ, बेटी पढाओ और बेटी लाओ जैसे कई कार्यकर्म संचालित किये जा रहे हैं.
आज हम आपको एक ऐसे गाँव के बारे में बताएँगे जहाँ बेटी जन्म की खुशी मानने के साथ प्रकृति को भी संवारा जा रहा है.
आइये जानते हैं कहाँ है यह गाँव
इस गाँव का नाम पिपलांत्री है, जो राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है. इस गाँव में बेटी जन्म की ख़ुशी में जो होता है. वह हर बेटी के लिए वरदान है. यह गाँव सिर्फ बेटी बचाने और हरियाली फ़ैलाने के लिए सबको प्रेरित कर रहा है.
यहाँ बेटी जन्म होने पर 111 पेड़ लगाकर ही यहाँ बेटी जन्म की ख़ुशी मनाते है. पूरे गाँव वाले मिलकर उस बच्ची के नाम पर 21 हजार रूपये जमाकर बच्ची के नाम में बैंक में खाते खुलवाते हैं. इस परम्परा से यहाँ के लोग सिर्फ बेटी ही नहीं बल्कि पर्यावरण को भी बचा रहे है. एक बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाना सच में हर बेटी के लिए सम्मान है.
इस परम्परा की शुरुवात पिपलांत्री भूतपूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल के द्वारा की गई. इन्होने इस परम्परा की शुरुवात अपनी बेटी के मरने के बाद उसको श्रधांजलि के रूप में पूरे गांव में पेड़ लगाना शुरू किया. तब से जब भी इस गाँव में बेटी जन्म होती है तब पुरे गाँव वाले मिलकर 111 पेड़ लगाते है और इन पेड़ों को दीमक ना लगे इसलिए इन पेड़ों के आसपास एलोवेरा (ग्वारापाठा) का पौधा भी लगाते है.
गाँव की यह परम्परा से ना केवल समाज में बदलाव लाएगी बल्कि प्रकृति में भी बदलाव होगा.
इसके अलावा इस गाँव में बेटी की सुरक्षा के लिए एक शपथ पत्र तैयार कर उस पर माता-पिता से हस्ताक्षर लिया जाता है.
जिसमे बेटी सुरक्षा की शर्ते लिखी होती है. बेटी का विवाह कम उम्र में नहीं करेंगे, बेटी को नियमित रूप से स्कूल भेजेंगे और उनके नाम से लगाए वृक्षों की रक्षा और देखभाल करेंगे,
इस गाँव की इस परम्परा जानकार हर बेटी यही जन्म लेना चाहेगी. यह परम्परा हर किसी के लिए एक प्रेरणा स्रोत है.
इस गाँव की परम्परा को अगर हर कोई अपना ले तो दुनिया की दो सबसे बड़ी समस्याएं ख़त्म हो जाएगी.