यह मंदिर गुजरात में बड़ोदरा शहर के पास कावी नामक गाँव में समुद्र तट पर स्थित है.
इसका वर्णन शिवपुराण के रुद्र संहिता के अध्याय एकादश में है. इस जगह पर महिसागर नदी सागर में समाहित होती है. इस मंदिर की खोज करीब 200 वर्ष पहले की थी .
इस मंदिर का नाम स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है.
शिवपुराण के अनुसार ताड़कासुर नामक एक असुर ने भगवान् शिव को तपस्या कर प्रसन्न किया था. उस असुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उसको मनवांछित वरदान दिया था. उस वरदान के अनुसार शिव पुत्र के अलावा उस असुर को कोई नहीं मार सकता था. उस असुर को मारने के लिए शिव पुत्र की आयु छह दिन की होनी चाहिए.
वरदान के मिलते ही इस असुर ने तीनों लोकों में अत्याचर कर हाहाकार मचा दिया, जिससे दुखी होकर सारे देव और ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास आकर उस असुर के वध के लिए प्राथना की. तब शिव ने उनकी प्राथना स्वीकार कर ली और श्वेत पर्वत कुंड से उत्पन्न हुए 6 दिन के कार्तिकेय, जिनकी 4-आंख, 6-मस्तिष्क और 12 हाथ थे, से ताड़कासुर का वध करवाया गया.
उस असुर के मौत के बाद कार्तिकेय को उसके शिव भक्त होने का ज्ञान हुआ, जिसके कारण कार्तिकेय को शर्मिंदगी महसूस हुई. तब भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को उसकी वध की जगह में शिवालय बनवाने को कहा.
उस विचार के बाद सारे देवता एकत्र हुए. महिसागर संगम तीर्थ में ‘विश्वनंदक’ स्तंभ का निर्माण किया. और फिर पश्चिम भाग के स्थित स्तंभ पर भगवान शिव आकर स्वयं बिराजमान गए और तब से यह जगह स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के नाम से पुकारा जाने लगा.
यहाँ के लोगों के अनुसार इस स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक करने हेतु समुद्र देव स्वयं आते हैं.
यहाँ श्रद्धालुओं के लिए पर्चे वितरित किये जाते है, जिसमे ज्वार-भाटा आने का समय और वक़्त लिखा रहता है और जब ज्वार आता है तो शिवलिंग पूरी तरह समुद्र में डूब जाता है.
यह स्तंभेश्वर महादेव मंदिर प्रातःकाल और शाम के वक़्त कुछ पल के लिए गायब हो जाता है या तो कहिये कि पानी में डूब जाता है और कुछ पल बाद फिर वही दिखाई देता है, जो एक चमत्कार जैसा महसूस होता है.
हर महाशिवरात्रि और अमावस्या के दिन इस स्थान पर मेला लगता है.
एकादशी और पूर्णमासी की रात यहाँ पूजा-अर्चना की जाती है.
इस जलाभिषेक को देखने यहाँ पर बहुत दूर-दूर से भक्तगण आते हैं.
आपको भी इस सुन्दर दृश्य को देखना है तो आप वहां जाकर इस अद्भूत दृश्य को देख सकते है.