सन 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हो रहा था तब कश्मीर की रियासत का एक हिस्सा ‘मीरपुर’ भी था.
पाकिस्तान वाले पंजाब से हजारों की संख्या में हिन्दू मीरपुर पहुँच रहे थे. वहीँ मीरपुर के मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे. उस समय तक यह हिन्दू बहुल्य इलाका था, जो कश्मीर में आ रहा था.
फॉरगॉटन एट्रोसिटीज़: मेमोरीज़ ऑफ़ अ सर्वाइवर ऑफ़ द 1947 पार्टीशन ऑफ़ इंडिया, अगर आप लेखक के. गुप्ता की लिखी पुस्तक पढ़ते हैं तो आप मीरपुर की कहानी को अच्छी तरह से समझ सकते हैं.
27 अक्टूबर 1947 को घोषणा की गयी कि मीरपुर का विलय भारत में होगा. तभी पाकिस्तान की सेना ने मीरपुर को घेरना शुरू कर दिया. भारतीय सेना की बहुत ही छोटी सी टुकड़ी ने तब वहां कब्ज़ा कर रखा था. सेना जानती थी कि वह इस मीरपुर की रक्षा नहीं कर पायेगी. जानकारी दिल्ली में दी गयी. जहाँ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने अभी इस मुद्दे पर कोई भी कार्यवाही को करने से मना कर दिया.
जब मीरपुर में आई पाकिस्तानी सेना
सभी को खबर हो चुकी थी कि अब भारत यहाँ फंसे हिन्दुओं की मदद नहीं करने वाला है. मीरपुर के हिन्दुओं ने कश्मीर के वजीरे-आजम शेख अब्दुल्ला से मदद मांगी किन्तु यहाँ से भी कोई मदद नहीं मिली. इसके बाद शुरू हुआ कत्लेआम, कई दिनों तक चला था. हिन्दुओं की हत्या क्रूरता पूर्वक की गयी. महिलाओं का बलात्कार किया गया और कहते हैं कि इनको पाकिस्तान के बाजारों में 20-20 रुपैय में बेच दिया गया था.
कुछ इतिहास की पुस्तकें बताती हैं कि तब के भारतीय प्रधानमंत्री ने 18 हजार हिन्दुओं को कटने के लिए मीरपुर में छोड़ दिया था. तो क्या इस हिसाब से जवाहर लाल नेहरू 18 हजार लोगों के हत्यारे हैं?
इसके साथ-साथ सबसे बड़ी बात यह है कि तब महात्मा गांधी ने भी इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया था. कुछ लोग बताते हैं कि गांधी जी ने यह बोला था कि मीरपुर में सेना नहीं भेजी जा सकती है क्योकि वहां बर्फ पड़ रही है.
सबसे बड़ी गलती क्या हुई ?
अगर इस घटना को सही से देखते हैं तो सबसे बड़ी गलती राजा हरि सिंह की नजर आती है.
कश्मीर और मीरपुर राजा हरि सिंह की छोटी सी सेना के हवाले था, क्योकि तब इसने भारत में विलय होना स्वीकार नहीं किया था. लेकिन जब पाकिस्तान की सेना आई तो हरि सिंह की सेना कुछ भी ना कर सकी.
जब पाकिस्तानी सेना कत्लेआम कर रही थी तो उसके 17 दिन बाद भारत के प्रधानमंत्री की नींद खुली थी. तब मीटिंग्स का दौर शुरू हुआ लेकिन हिन्दुओं की मदद के लिए कोई सेना नहीं भेजी गयी थी. ना जाने क्यों भारत अपने लोगों की मदद नहीं कर रहा था. इतिहास उस समय के नीति-निर्माताओं से आज भी यह पूछता है कि उन मौतों का जिम्मेदार कौन है?
एक बार एक जहाज से जब मीरपुर का सर्वे किया गया था तो पायलेट यही बताता है कि वहां खुलेआम लोगों को मारा जा रहा था. लोगों के घरों को लुटा जा रहा था. महिलाओं को नंगाकर बाजार में खड़ा किया गया था.
एक स्कूल के अन्दर कुछ 100 लड़कियां थीं जब कोई भी इसकी मदद के लिए नहीं आया तो उन्होंने कुंए में कूदकर जान दे दी थी.
क्यों 18 हजार हिन्दुओं को नहीं बचाया गया था?
असल में इन बेकसूर हिन्दुओं को बचाया जा सकता था. अगर तब जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी पाकिस्तान से इन लोगों को भारत भेजने की बात कहते तो वह शायद इन लोगों को छोड़ सकता था क्योकि पाकिस्तान को यह इलाका चाहिए था. तब अगर यह हिन्दू लोग भारत देश वापस आ जाते, तो आगे की कार्यवाही करने में दिक्कत महसूस नहीं होती. लेकिन उस समय यह कदम किसी ने नहीं उठाया था. सही गलत के चक्कर में 18 हजार लोगों का कत्लेआम किया गया था.
मीरपुर की यह घटना भारत के लिए किसी कलंक से कम नहीं है. जो लोग अपने लोगों की मदद नहीं कर सकते हैं तो वह किसी काम के नहीं बोले जा सकते हैं.
आज इस घटना के लिए हम किसी जिम्मेदार ठहराए यह फैसला करना काफी मुश्किल है.
आप इस घटना को पूरा पढ़कर इसका फैसला खुद ही कर लें.