हिन्दू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके मृत शरीर को जलाकर उसका दाह संस्कार किया जाता है.
दाह संस्कार के चार दिन बाद मृत शरीर की राख को इकठ्ठा करके पवित्र जल में प्रवाहित किया जाता है.
ऐसी परम्परा सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं अपितु दुनिया के कई धर्मों में है जिनमें मृत शरीर को जलाया जाता है.
हमारे धर्म में जहाँ मृत व्यक्ति की राख को किसी पवित्र जल स्त्रोत में बहा देते है वहीँ अन्य धर्मों में इस राख को किसी पवित्र स्थान पर या मृत व्यक्ति की यादों से जुड़े स्थान पर बिखेर देते है.
अधिकतर तो दाह संस्कार के चौथे दिन ही रख को गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में बहा दिया जाता है . कभी कभी किसी कारण से यदि ऐसा करना संभव ना हो तो मृत व्यक्ति की राख जिसे “फूल” भी कहते है, को किसी पात्र में सुरक्षित रख दिया जाता है जब तक कि उस राख को जल में प्रवाहित ना कर दिया जाए.
क्या आपने कभी सोचा है कि राख को जल में बहाने के पीछे क्या कारण है ?
राख को नदियों या जल स्त्रोत में बहाने के धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही तरह के कारण है.
धार्मिक कारण
हमारे शास्त्रों में लिखा है कि सभी नदिया पवित्र होती है और इन पवित्र नदियो में भी गंगा पवित्रतम नदी है.
कूर्मपुराण के अनुसार गंगा सबसे पवित्र नदी है और जब मृत व्यक्ति के फूल गंगा में प्रवाहित करते है तो उस व्यक्ति की आत्मा सभी पापों से मुक्त हो जाती है और जब तक उस व्यक्ति की राख गंगा के साथ बहती रहती है वो व्यक्ति स्वर्ग का आनंद लेता रहता है.
उसके बाद उसकी मुक्ति हो जाती है.
वैज्ञानिक कारण
सनातन धर्म के लगभग हर कर्मकांड के पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण होता है. मृत शरीर की राख को नदियों या जल स्त्रोत में बहाने के पीछे भी बहुत से विद्वान एक वैज्ञानिक कारण बताते है. उनके अनुसार हमारे देश की कृषि व्यवस्था नदियों पर ही निर्भर करती है.
नदियों का जल ही खेतों में सिंचाई के काम आता है. जब मृत व्यक्ति की राख नदी में प्रवाहित की जाती है तो उस राख के साथ बहुत से अन्य तत्व भी जल में मिल जाते है. इन तत्वों में सबसे प्रमुख होता है फोस्फोरस जो कि हमारी हड्डियों में होता है.
फोस्फोरस फसलों के लिए भी बहुत उपयोगी होता है. जब हड्डियों की राख जल में प्रवाहित की जाती है तो उसे साथ फोस्फोरस भी जल में मिल जाता है. जल में मिला फोस्फोरस जब सिंचाई माध्यम द्वारा खेतों में पहुँचता है तो फसल को लाभ पहुंचता है और धरती को उर्वरा बनता है.
अब आपको पता चला कि सनातन धर्म में हर एक कर्मकांड के पीछे धार्मिक कारण इसीलिए दिए जाते है कि उनको पूरा करने से उन कर्मकांडों के पीछे छुपा वैज्ञानिक लाभ भी प्राप्त हो जाए.