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छह साल तक लगातार किया इसने युद्ध, भारत पर साम्राज्य का ख्वाब किया पूरा!

King Harshvardhan

ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में क़रीब 5,000 हाथी, 2,000 घुड़सवार एवं 5,000 पैदल सैनिक थे.

कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 एवं घुड़सवारों की संख्या एक लाख पहुंच गई.

हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को चाट एवं भाट, अश्वसेना के अधिकारियों को हदेश्वर पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत एवं महाबलाधिकृत कहा जाता था.

जी हाँ आज हम बात कर रहे हैं महाबली हर्षवर्धन राजा की. भारतीय इतिहास में इस राजा के साम्राज्य का वर्णन उस लिहाज से नहीं हो सका है जिसका यह हकदार है.

कहते हैं कि तब इस राजा के सामने आने से हर राज्य डरता था. एक बार जो यह तय करता था फिर किसी भी कीमत पर उसे पाकर रहता था.

राजा हर्ष अंतिम हिंदू सम्राट् था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया. हर्षवर्धन 606 ईस्वी में 16 वर्ष की आयु में तब सिंहासन का उत्तराधिकारी बना था जब उसके भाई राज्यवर्धन की शशांक द्वारा हत्या कर दी गयी थी जो गौड और मालवा के राजाओं का दमन करने निकला था. हर्ष को स्कालोट्टारपथनाथ के रूप में भी जाना जाता था. सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अपनी बहन राज्यश्री को बचाया था.

लगातार छह साल तक लड़ा यह राजा

लेखक डा. रमा शंकर त्रिपाठी बताते हैं कि हर्षवर्धन लगातार छह साल तक युद्ध करता रहा था. समस्त उत्तर भारत पर इसका कब्जा था.  जबकि कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं कि उसने जब तक पाँचों भारत पर अधिकार नहीं कर लिया था तब तक वह युद्ध करता रहा था. थानेश्वर इसका वह राज्य था जो उसे विरासत में मिला था.

कुछ इतिहासकार ऐसा बताते हैं कि जीवन के अंतिम तीस वर्षों में उसने अपनी तलवार म्यान में की थी और शांतिपूर्वक शासन किया था.

हर्ष बौद्ध धर्म की महायान शाखा का समर्थक होने के साथ-साथ विष्णु एवं शिव की भी स्तुति करता था. ऐसा माना जाता है कि हर्ष प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था. हर्ष ने लगभग 643ई. में कन्नौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया था. हर्ष द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा कोमोक्षपरिषद् कहा गया है.

“ प्राचीन भारत का इतिहास-डा.रमाशंकर जी की पुस्तक से प्राप्त जानकारी के आधार पर”

योद्धा के साथ-साथ लेखक भी:-

इतिहास बताता है कि राजा हर्ष जितनी अच्छी तलवार चलाते थे वह उतने ही अच्छे लेखक भी थे. कलम से भी इनको बहुत प्यार हुआ करता था. हर्ष की लिखी कई नाटिकाओं का मंचन आज भी नाटकों की दुनिया में होता है.

यह देश का दुर्भाग्य ही है कि आज हमें इतिहास की पुस्तकों में अकबर,बाबर और जहाँगीर के बारें में तो विस्तार से पढ़ने को मिल जा रहा है लेकिन इतने महँ हिन्दू राजा की बारें में आपको बहुत कम जानकारी मिलती है.

यहाँ बताई गयी जानकारी भी काफी कम है पर उम्मीद करते हैं कि आप अब खुद इस राजा के बारें में पढ़ना पसंद करेंगे.