गाय, भारत में 2015 में सबसे ज्यादा गूगल किया गया शब्द था.
हमारे देश में जहाँ कुछ लोग गाय को एक पवित्र पशु मानते हुए माता का दर्जा देते है तो वहीँ कुछ लोगों के लिए ये एक जानवर से बढ़कर कुछ नहीं है.
पिछले साल बहुत बार गाय के मुद्दे को लेकर देश में विवाद हुआ. दादरी में हुई घटना पर तो ऐसा बवाल हो गया कि कुछ लोगों को लगने लगा कि भारत अब रहने लायक ही नहीं रहा है, वहीँ कुछ सोये लोग ऐसे थे जिन्हें इमरजेंसी से लेकर 84 के दंगों या बाबरी के गिरने और उसके बाद मुंबई धमाको से फर्क नहीं पड़ा लेकिन गाय के नाम पर उनको पूरा का पूरा देश असहिष्णु लगने लगा.
वैसे ये भी कमाल की बात है जिस भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है वही भारत गौ मांस का विश्व में सबसे बड़ा निर्यातक है.
लेकिन ये सब बातें जाने दीजिये अगर हम भी यही सब बातें लेकर एक दुसरे से लड़ने लगे तो कहाँ की समझदारी है. दुनिया को अगर खुशहाल और खूबसूरत बनाना है तो अच्छी बातें, अच्छी घटनाओं के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चलना चाहिए. तभी तो लगेगा ना कि ये दुनिया इतनी भी बुरी नहीं जितनी टीवी या मीडिया वाले दिखाते है.
चलिए अच्छी खबरों की इस श्रृंखला में आज हम आपको ले चलते है पाकिस्तान के सिंध प्रान्त.
पाकिस्तान का सिंध प्रान्त हिन्दू बाहुल्य की वजह से प्रसिद्द है. इस प्रान्त में एक छोटा सा गाँव है मीठी.
मीठी, जैसा इस गाँव का नाम है वैसी ही मिठास यहाँ के लोगों में भी दिखाई देती है. इस गाँव में हिन्दू और मुसलमान बहुत सी पीढ़ियों से एक साथ रह रहे है. यहाँ तक की आज़ादी के समय हुए बंटवारे में भी इस गाँव के लोग पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान नहीं गए थे.
इस गाँव में रहने वाले हिन्दुओं और मुसलमानों का भाईचारा देखते ही बनता है. तालिबान, लश्कर या हाफिज सैईद जैसे आतंकियों के गाल पर करारा तमाचा है ये गाँव.
इस गाँव में हिन्दू और मुस्लिम ना सिर्फ एक साथ घुलमिलकर रहते है बल्कि यहाँ इन दोनों अलग अलग मजहबों के लोगो का मेल ऐसा है कि कोई नया आदमी तो एक बार में बता ही नहीं सकता कि कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान.
कौमी एकता और भाईचारे की दुनिया भर के लिए एक अनोखी मिसाल है मीठी गाँव. इस गाँव में रमजान के पाक महीने में हिन्दू भी अपने मुस्लिम भाइयों के साथ रोज़ा रखते है और ईद भी मनाते है.
इस गाँव के मुसलमान भी अपने हिन्दू भाइयों की भवनों को ठेस ना पहुंचे इसलिए गाय को नहीं मारते. इस गाँव में गौमांस को कोई भी नहीं खाता.
यही नहीं दिवाली के मौके पर मुसलमानों के घर भी दिए से रोशन होते है और हिन्दू मुस्लिम दोनों साथ साथ ख़ुशी ख़ुशी आतिशबाजी करते है.
ये आतिशबाज़ी फुलझड़ी और अनार की होती है बम और गोलियों की नहीं.
जब अमेरिका से आये एक पत्रकार ने यहाँ के लोगों से पुछा कि आखिर इतना भाईचारा कैसे?
इस सवाल के जवाब में मीठी गाँव के हिन्दू और मुसलामानों ने एक सुर में कहाँ कि हम लोग इतने समय से एक साथ घुलमिल कर रह रहे है कि हमें खुद पता नहीं चलता कि हम हिन्दू है ना मुस्लिम.
देखा आपने एक मीठी गाँव के हिन्दू और मुसलमान है जो रामायण और कुरान पढ़ते है और इतने सालों से घुलमिलकर रहते है और एक ISIS के कट्टरवादी मुसलमान और हिन्दू कट्टरवादी है जो धर्म के नाम पर लोगों को मारने से नहीं चूकता.
मीठी गाँव इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि जब एक मुस्लिम राष्ट्र में हिन्दू और मुसलमान एक साथ सद्भाव के साथ रह सकते है तो आखिर और कहीं क्यों नहीं?
इसका शायद एक ही जवाब है समस्या धर्म या मजहब नहीं, समस्या भगवान् या अल्लाह नहीं समस्या है इंसान की मानसिकता और अज्ञान जो उसे धर्म के नाम पर अँधा बना देता है.
मीठी गांव उमरकोट के अंदर आता है यहाँ के राणा चन्द्र सिंह पाकिस्तान में सबसे सम्मानित हिन्दू रहे है.
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