कई बार हमारी भलाई भी हम पर भरी पड़ सकती है.
ऐसा होता भी है कि अगर हम किसी दुष्ट व्यक्ति की भलाई करते हैं तो वह दुष्ट व्यक्ति हमारा भी बुरा कर सकता है. इसलिए हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हमारे द्वारा नेककार्य, किसी नेक व्यक्ति के लिए किया गया हो.
इतिहास में ऐसी ही एक कहानी भगवान शिवजी के नाम दर्ज है जब शिव भगवान अपने ही दिए वरदान से जान बचाकर भागते हुए देखे गये थे.
आइये जानते हैं क्या था पूरा मामला-
शिव- “प्यारे वृकासुर! बस करो, बहुत हो गया. मैं तुम्हें वर देना चाहता हूं. मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ. तुम आज मुंह मांगा वर मांग लो.”
भगवान शिव वृकासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसको वरदान देने गये थे. तब वृकासुर ने वर मांगा कि मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूं, वो वही मर जाए. उसकी यह याचना सुनकर भगवान रुद्र पहले तो कुछ अनमने से हो गए फिर हंसकर कह दिया-अच्छा ऐसा ही हो.
इसी वरदान से वृकासुर का नाम भस्मासुर पडा.
अब भस्मासुर शिव के ऊपर हाथ रखना चाहता था
शिव भगवान ने जब यह वरदान भस्मासुर को दिया तो तभी इस कपटी के मन में छल आ गया और वह माता पार्वती के प्रति मोहित होने लगा था. तो भस्मासुर शिव को हो मारने के लिए उनके पीछे दौड़ने लगा. शिव यहाँ मजबूर थे और वह अपनी शरण में आये भस्मासुर को मार नहीं सकते थे.
भस्मासुर से बचने के लिए भोलेनाथ ने हिमालय की चोटी पर बने गुफा में शरण ली. लेकिन अभी भी यह कपटी शिव को मारने के लिए इनको खोज रहा था.
तब किसने बचाई शिव की जान?
जब भगवान शिव इस संकट की घड़ी में फँस गये थे तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी नाम की एक रमणी के रूप में भस्मासुर के सामने प्रकट हुए. यह दानव मोहिनी को देखकर बेहद प्रसन्न हुआ. इस राक्षस ने मोहिने के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. तब मोहिने ने भस्मासुर से कहा कि वह उसी व्यक्ति से विवाह करेगी जिसको नृत्य आता हो.
भस्मासुर ने मोहिनी से नृत्य सिखाने का आग्रह किया तब मोहिनी ने भस्मासुर को नृत्य सिखाते-सिखाते उसी के हाथ उसके सर पर रखवा दिए. ऐसा होते ही भस्मासुर भस्म हो जाता है और भगवान शिव की जान बच जाती है.
वैसे कुछ जगह बोलते हैं कि विष्णु जी ने भस्मासुर का नाश करने के लिए जल का प्रयोग किया था.
लेकिन ऊपर वर्णित कहानी को ज्यादा सत्यापित बताया गया है. बात चाहे जो भी हो, तरीका भी जैसा रहा हो लेकिन सत्य यह हैकि विष्णु जी ने तब भगवान शिव के प्राणों की रक्षा की थी.