यह कोई सपना नहीं है अगर युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह को सही मौका और मदद दी जाए तो वह इस तरह का इंजन बना सकते हैं जो तीन गुना अधिक माइलेज दे सकता है.
यह व्यक्ति इतना सब कुछ हवा में नहीं बोल रहा है बल्कि अपनी निजी मोटर साईकिल में इस इंजन का वह प्रयोग भी कर रहे हैं.
लेकिन इस व्यक्ति के आविष्कार को अभी एक सही प्लेटफार्म की जरूरत है ताकि वह इस कार्य को बेहतर रूपसे अंजाम दे सके.
अभी अपनी बाइक में इस्तेमाल कर रहे हैं यह इंजन
जब शैलेन्द्र दूसरों को इस बात की जानकारी देते थे तो कोई भी व्यक्ति इन पर विश्वास नहीं करता था. लेकिन फिर इलाहबाद के इस वैज्ञानिक ने यह तय किया कि वह हर किम्मत पर इस इंजन को सबके सामने लेकर आयेंगे. कुछ पत्रिकाओं में इस खबर की जानकारी सन 2010 में की गयी थी.
शैलेन्द्र ने अभी अपनी बाइक का माइलेज आम गाड़ियों की तुलना में तीन गुना अधिक बनाकर दिखा दिया है. जो लोग इस व्यक्ति की बात को मजाक में लेते थे अब वह सभी हैरान हैं कि यह कारनामा किस तरह से पूरा हो पाया है.
इनकी इस खोज को कई अन्य विशेषज्ञों ने परखा है और यह पूरी तरह से सही बताई गयी है. कई एक्सपर्ट के सामने इस खोज को रखा गया है और सभी ने इसे एक क्रांति का नाम दिया है. पिछले दिनों पढ़ी खबर के अनुसार पुणे से इस खोज को सत्यापित कराने के लिए शैलेन्द्र के पास धन नहीं है. ज्ञात हो कि यहाँ पर कोई भी नया आविष्कार सत्यापित कराने के लिए कम से कम 15 लाख रुपयों की आवश्यकता होती है.
अपनी नौकरी तक दांव पर लगानी पड़ी
सुनकर कितना अच्छा लगता है कि किसी युवा ने तीन गुना माइलेज वाला इंजन बना लिया है. सभी इस कार्य को क्रांति का नाम दे रहे हैं लेकिन क्या हम और आप इस खोज के पीछे के संघर्ष को देख सकते हैं? शैलेन्द्र को इस कार्य के लिए अपनी नौकरी तक को छोड़ना पड़ा है. समाज में आपसी जानकार व दोस्तों से कुछ मदद मिलती रही थी जिसके दम पर इतना कुछ हो पाया है.
क्या मिल पायेगा शैलेन्द्र को उनका हक़
यह एक बड़ा सवाल है कि क्या शैलेन्द्र को अपने एस आविष्कार के लिए सही जगह और सही प्लेटफार्म मिल पायेगा.
जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत देश में आज भी इस तरह के काम के मदद नहीं मिल पाती है. देश की सरकार आर राज्य सरकारें इस ओर कुछ बहुत अधिक नहीं कर पा रही है.
लेकिन यहाँ हम उम्मीद कर सकते हैं कि शैलेन्द्र के इस आविष्कार को सही प्लेटफार्म मिल सके और पूरा विश्व भारत माता के इस लाडले पर गर्व करे.