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172 भारतीयों को फांसी, 228 सेशन को सुपुर्द, यह हुआ था महात्मा गाँधी की आँखों के सामने पर…!!!

mahatma-gandhi

देश को लगने लगा था कि अब हमको स्वतंत्रता प्राप्ति से कोई नहीं रोक सकता है.

अंग्रेजों ने भी लगभग हार मान ली थी. देश में आंदोलन पूरे जोर-शोर से चल रहे थे. लेकिन तभी अचानक से देश में एक जगह हिंसा हो जाती है और इतना विशाल आन्दोलन वापस ले लिए जाता है. सभी को धक्का लगता है.

4 फरवरी 1922, दिन रविवार

गोरखपुर का चौरीचौरा नामक स्थान सभी को ज्ञात होगा. गांधी जी का असहयोग आन्दोलन देश में व्यापक स्तर पर चल रहा था. तभी अंग्रेजी पुलिस द्वारा एक व्यक्ति के अपमान का बदला लेने के लिए हजारों लोग गोरखपुर में एक थाने को आग लगा देते हैं. इस हादसे में कुल 27 पुलिस कर्मी मारे जाते हैं और गांधी जी असहयोग आन्दोलन वापस लेने की घोषणा कर देते हैं. इस हादसे के कारणों को तलाश करते हुए 272 लोगों का चालन होता है, 228 सेशन को सुपुर्द किये जाते हैं, 172 को फांसी की सजा दी जाती है. वहीँ ऊपरी अदालत 19 को फांसी और 14 को आजीवन कारावास की सजा सुनाती है.

इतिहास ने कभी इनको स्वतंत्रता सेनानी नहीं माना

बेशक कहते हैं कि इस घटना से गाँधी जी को आघात हुआ था लेकिन यह यह सच नहीं है कि इसी घटना ने अंग्रेजों की जड़ों को हिला के रख दिया था? अंग्रेज पुलिस जो अभी तक भारतीयों को जानवर जैसा समझती थी वह अब जनता से डरने लगी थी.

महात्मा गाँधी जी ने कभी भी इन लोगों को उनका हक़ दिलाने के लिए कोई बात नहीं की. यहाँ तक की इतिहास ने जिस तरह से इन लोगों को भुला दिया वह भी उचित न्याय नहीं कहा जा सकता है.

स्वतंत्रता आन्दोलन में ना जाने कितने मासूमों की जाने गयी थी, सभी को आजादी का बराबर हक़ दिया गया लेकिन आखिर क्यों चौरीचौरा के आन्दोलनकारियों को शहीद नहीं माना जाता है. यहाँ तक की मारे गये पुलिसकर्मी तो शहीद बन गये थे लेकिन गांधी जी ने कभी साफ़-साफ नहीं बोला कि इन शहीदों के लिए कोई स्मारक का निर्माण हो.

देश की राजनीति ने कभी नहीं माना इनको स्वतंत्रता सेनानी

अब चाहे तो इसे कांग्रेस का खेल बोलो या फिर देश की राजनीति का, लेकिन सच यह है कि सालों बाद भी इन शहीदों को कोई देश भक्त नहीं मानता है. मात्र किताबों में बच्चों को यह पढ़ाया जाता है कि इस घटना की वजह से गाँधी जी का एक आन्दोलन रुक गया था. इन शहीदों के परिवार वालों को वह न्याय या सुविधायें भी नहीं दी गयी थीं जो एनी लोगों को मिली थी. लेकिन एक बात सच यह है कि इस घटना ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी.

इस साल भी भूला दिया गया यह दिन

4 फरवरी का दिन इस साल भी भूला दिया गया है. ख़बरें छपी तोत्हीं लेकिन वह इतनी छोटी थीं कि जैसे यह देश के इतिहास का कोई कलंक का दिन हो. किसी भी नेता ने जोश और दम के साथ इन शहीदों का नाम नहीं लिया. लेकिन आज भी गांधी जी से एक सवाल इन लोगों के घर वाले पूछना चाहते हैं कि क्या चौरी-चौरा से से देश को कोई फायदा नहीं पहुंचा था.

जिस तरह का बर्ताव इन लोगों के साथ किया गया है की यह लोग इसी लायक थे?

इस प्रश्न का जवाब आपको भी खोजना चाहिए.

खुद से जरुर पूछना चाहिए कि क्या इतिहास ने यह सही किया है?