अगर एक बार को हम तारीख को भूल जायें तो अनुमान लगाना मुश्किल हो जायेगा कि हम 20 वी सदी में हैं.
आज भी इंसान जिस मानसिकता के साथ जीवन गुजारा कर रहा है उस मानसिकता पर हमें शर्म आनी चाहिए.
सदियों से इंसान जाति, धर्म और रंगों के आधार पर बंटा हुआ है. एक जाति दूसरी जाति की दुश्मन है. एक धर्म दूसरे के लिए खतरा बना हुआ है. इसी तरह से यह इंसान लिंग के आधार पर भी विभाजित है. पुरूष इस संसार की महान खोज हैं और महिलायें धरती पर बोझ हैं.
मलेशिया के एक मौलवी ने हाल ही में एक फतवा जारी किया है. जिसे मुस्लिम लोगों को मानना ही होगा. इस मौलवी का कहना है कि ‘औरत अगर ऊंट पर भी बैठी है तब भी वह अपने पति को सेक्स से मना नहीं कर सकती है.’
वैसे इनका कहना साफ़ है कि कोई भी महिला किसी भी स्थिति में क्यों ना हो, किन्तु वह अपने पति को संभोग से रोक नहीं सकती है. कुछ ख़ास वजहों से ही वह बस अपने पति को मना कर सकती हैं वह है, मासिक धर्म, बिमारी या हाल में बच्चे को जन्म दिया हो.
क्या कहा मौलवी पिराक मुफ्ती ने:-
यह धारणा यूरोपीय लोगों द्वारा फैलाई गई है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए.
मौलवी के अनुसार पैगम्बर साहब ने बताया था कि पत्नी सेक्स के लिए पति को सिर्फ तभी मना कर सकती है, जब वह बीमार हो, मासिक धर्म हो रहा हो या उसने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो.
पिराक ने कहा कि महिलाओं को सेक्स से मना करने का अधिकार उसी पल खत्म हो जाता है, जब लड़की के पिता उसे पति को सौंप देते हैं. उन्होंने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म कुछ नहीं होता. यह यूरोपीय लोगों द्वारा बनाया गया है, हम इसका पालन क्यों किया जाये.
तो अब मौलवी के इस फतवे के अनुसार महिला सिर्फ एक सेक्स की वस्तु ही है. वैसे इनके इस ब्यान की अब निंदा की जा रही है. लेकिन सवाल यह है कि क्या आज जब इंसान विकसित होने का दम भर रहा है तब क्या ऐसे में उसकी सोच विकसित हो पाई है? लेकिन इस बात का जवाब ना ही है.
महिलाओं की स्वतंत्रता शायद इतनी ही है कि वह बस अपने लिए लाल या पीला शूट ही मर्जी का पहन सकती हैं.
यह हालत पूरे विश्व की है कि महिलाओं को अधिकार के नाम पर बस उनका शोषण ही किया जा रहा है.