कुछ ही दिनों बाद गणतंत्र दिवस है.
कितने ही लोगों की शहादत और कुर्बानी के बाद मिली थी हमको आज़ादी.
भगत सिंह,आजाद, लाला लाजपत राय,उधम सिंह, गाँधी,तिलक ना जाने कितने ही देशभक्त फांसी पर चढ़ गए थे या अंग्रेजों के अत्याचारों के शिकार बने लेकिन इनमें से किसी ने एक पल को भी आह नहीं भरी. जब तक आज़ादी नहीं मिली तब तक ये लड़ते रहे और आखिर में आज़ादी हासिल कर ही ली.
आज हम आपको आज़ादी की लड़ाई के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक के बारे में बताएँगे. ये उन शहीदों में से है जिनके बारे में हम सब शायद ही जानते है.
ये कहानी है खुदीराम बोस की. बोस को जब अंग्रेजी हुकुमत ने फांसी पर चढ़ाया तो उनकी उम्र थी सिर्फ 18 साल और कुछ महीने.
सोचिये इतनी कम उम्र में उन्होंने देश के लिए अपनी जान दे दी. ये वो उम्र होती है जिसमे अक्सर हम जवान हो रहे होते है और हवा में उड़ रहे होते है, उस उम्र में फांसी पर हँसते हँसते चढ़ जाना.
ऐसे लोग बिरले ही होते है, बातें तो हम सब कर सकते है पर देश के लिए जान देने का ज़ज्बा हर किसी में नहीं होता है.
खुदीराम का जन्म पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में सन 1889 में हुआ था. जब वो 13 साल के थे तो उनके गाँव में महर्षि अरविन्द और भगिनी निवेदिता आये. उनकी बातों से खुदीराम देशभक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित हुए. खुदीराम पर अरविन्द और निवेदिता के साथ साथ स्वामी विवेकानंद के विचारों का भी गहरा प्रभाव था.
खुदीराम बोस का स्कूल का एक किस्सा है, एक बार देशभक्ति की बात चल रही थी और उनके अध्यापक ने कहा कि सबको देश को आज़ाद कराने के प्रयास करने चाहिए.
कक्षा खत्म होने पर खुदीराम ने अपने शिक्षक से अँगरेज़ अधिकारीयों और सैनिकों को मारने के लिए रिवोल्वर की मांग की.
ऐसे थे खुदीराम बोस.
आने वाले एक दो सालों में खुदीराम बोस ने अंग्रेजों के कई ठिकानों पर बम के धमाके किये लेकिन पकडे नहीं गए.
उसके बाद जब मुज्जफरनगर के जज को मारने की बात आई तो खुदीराम बोस ने अपने एक साथी के साथ इस घटना को अंजाम देने का जिम्मा दिया. खुदीराम और उनका मित्र धमाका करने में सफल भी हुए लेकिन जिस घोड़ागाड़ी में जज को होना था उसमे दुसरे अधिकारी की पत्नी और बच्चे थे.
वो सब मारे गए और अंग्रेजी हुकुमत ने 1000 रुपये का इनाम खुदीराम के सर पर रखा. 25 मील तक चलने के बाद एक स्टेशन पर पुलिस ने उन्हें धर दबोचा.
जब उन्हें सजा के लिए ले जाया जा रहा था तो उन्होंने वनदे मातरम का नारा लगाया. रेलवे स्टेशन पर इस नन्हे से क्रांतिकारी को देखने के लिए हजारों की भीड़ जमा हो गयी.
तमाम यातनाओं के बाद भी खुदीराम ने अपने साथियों के बारे में नहीं बताया और हँसते हँसते 18 वर्ष और 8 महीने की उम्र में शहीद हो गए.