यह बात कहने में अजीब लग रही है लेकिन भारत में स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है, यह बात और है कि इस देवी के साथ हमारा समाज क्या सुलूक करता है वह भी हम जानते ही हैं.
प्रकृति ने स्त्री के भीतर कोमलता, सौम्यता और ममत्व के भाव कूट-कूटकर भरे हैं, ये सब भावनाएं हर महिला में समान रूप से देखी भी जाती हैं लेकिन जिस तरह हाथों की पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं, उसी तरह हर स्त्री ममता की भी मूर्ति हो यह भी जरूरी नहीं है. हमारा समाज स्त्री को परिवार की इज्जत मानता है और बहुत हद तक स्त्री को ही यह जिम्मेदारी सौंप दी गई है कि वह अपने परिवार और कुल के नाम पर कोई आंच ना आने दे.
जिस तरह महिलाएं कुल की लाज बचाने का काम करती हैं, अपने नैतिक और सामाजिक आचरण को पवित्र रखती हैं वहीं कुछ स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जिनके कृत्य कुल के विनाश का कारण बनते हैं.
ऐसी स्त्रियों को सामाजिक भाषा में कुलक्षिणी कहा जाता है, लेकिन भारत के प्रसिद्ध ग्रंथ बृहद संहिता के अनुसार ऐसे कई तरीके हैं जिनसे स्त्री के चेहरे-मोहरे को देखकर ही उसके स्वभाव का पता लगाया जा सकता है.
– संहिता के अनुसार ऐसी स्त्री जिसके पैर की कनिष्ठिका अंगुली या उसके साथ वाली अंगुली, धरती को स्पर्श ना करती हो, अंगूठे के साथ वाली अंगुली अंगूठे से बहुत ज्यादा लंबी हो तो ऐसी स्त्रियां हालात और स्थिति के अनुसार अपना चरित्र बदल लेती हैं. ऐसी महिलाएं अत्याधिक क्रोधी स्वभाव की होती हैं और उन पर नियंत्रण स्थापित करना बहुत कठिन होता है. इनके चरित्र पर विश्वास नहीं किया जा सकता. जिन महिलाओं के पैर का पिछला भाग काफी मोटा और उठाव लिए होता है, ऐसी महिलाएं घर के लिए शुभ नहीं होतीं.