खाने-पीने की चीजों के उपवास के बारे तो हम सभी जानते हैं.
मगर हममें से किसी ने भी कभी भावनात्मक उपवास किया है? शायद ही किसी ने किया हो।
परंतु इसके बारे में हम जान तो सकते ही हैं. जानने पर शायद यह उपवास करने का मन भी हो जाए क्योंकि इसके फायदे शरीर से ज्यादा मन और आत्मा को मिलते हैं.
भावनाओं का उपवास यानी रस-साधना. इसमें मनुष्य मन की भावनाओं और इंसान के मूड्स को परिभाषित करने के लिए नवरस का सहारा लिया गया है. नवरस यानी श्रृंगार, हास्य, अद्भुत, शांत, रौद्र, वीर, करुण, भयानक और वीभत्स रस.
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में वर्णित इन रसों में लगभग हर प्रकार की भावना आ जाती है. इनमें से प्रत्येक रस को और विस्तार से परिभाषित करने के लिए रस-साधना में प्रत्येक रस का दायरा थोड़ा-थोड़ा और बढ़ाया गया है, ताकि उसमें मनुष्यमन की अधिकाधिक भावनाओं का समावेश हो सके.
मसलन श्रृंगार रस में सुंदरता और समर्पण को भी शामिल किया गया है. हास्य में उत्फुल्लता, प्रसन्नता, ठिठोली से लेकर गुदगुदाने वाले व्यंग्य तक हैं. अद्भुत में आश्चर्य के साथ ही जिज्ञासा, कौतुहल और रहस्य भी शामिल है. शांत रस में मन:शांति के साथ ही स्थिरचित्तता और विश्राम (रिलेक्सेशन) है. रौद्र रस में क्रोध के साथ ही चिड़चिड़ाहट और तनाव भी आया है. वीर रस में हिम्मत के साथ ही गर्व और आत्मविश्वास भी शामिल किए गए हैं. करुणा में दया, सहानुभूति है. भय के साथ चिंता और घबराहट को भी रखा गया है. वीभत्स तो बस वीभत्स ही है, इस रस से उत्पत्ति होती है घृणा की, जो कि निश्चित ही एक नकारात्मक भावना है.
आज तक जो विधियां प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में बंद थीं वे भी इंटरनेट के माध्यम से आजकल प्रकाश में आ रही हैं. इन्हीं में से एक है रस साधना अथवा भावनाओं का उपवास. इस उपवास में पहले वह रस चुन लिए जाते हैं जो नकारात्मक हैं और जो सकारात्मक हैं और फिर संकल्प लिया जाता है किसी एक नकारात्मक रस से कुछ तयशुदा दिनों तक दूरी का, फिर किसी हफ्ते में पूरे हफ्ते एक सकारात्मक रस के स्वयं को प्रशिक्षण का, अभ्यास का। मान लीजिए आपने तय किया है कि इस हफ्ते क्रोध नहीं करेंगे इस हफ्ते क्रोध का उपवास है तो यदि आपको इस दौरान क्रोध आया तो आपको अपना संकल्प याद आ जाएगा.
इस प्रकार अन्य बुरे रसों से थोड़े-थोड़े समय दूर रहने के नियमित अभ्यास से आपके स्वभाव में परिवर्तन आएगा, अपने स्वभाव पर नियंत्रण पैदा होगा. किसी अन्य हफ्ते आप सोच लेंगे कि इस बार शांत रस की रस-साधना करना है तो आप उसका उपवास नहीं करेंगे, अभ्यास करेंगे. किसी हफ्ते, पूरे हफ्ते शांत रहने का संकल्प आपका उद्वेग कम करेगा. खुश रहने का अभ्यास आपको छोटी-छोटी बातों में भी खुश रहना सिखाएगा. ज्यादा से ज्यादा अभ्यास के साथ ही आपकी वृत्ति ही बदलने लगेगी और आप प्रसन्न रहना सीख जाएंगे
मन का क्लेश मिटाने और सुकून और शांति महसूस करने के लिए प्राचीन भारत की तांत्रिक परंपरा में रस-साधना की आकल्पना की गई है, जिसे योगी ही नहीं सामान्य लोग भी कर सकते हैं और हां यह उपवास ऐसा नहीं कि आपके लिए पत्नियां करें और आपका काम बन जाए. रस-साधना एक ऐसी साधना है जो अपनी स्थिर चित्तता के लिए किसी भी व्यक्ति को स्वयं ही करना होता हैं.
इसके लिए संकल्प से भी बड़ी चीज है आत्मस्वीकृति. यदि आपको लगता है कि आपमें कोई नकारात्मक वृत्तियां हैं ही नहीं या यह कि आपको प्रसन्ना रखना भी दूसरों की जिम्मेदारी है आपकी स्वयं की नहीं तो फिर यह रस साधना आपके लिए नहीं है.