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गौ-कथा से लेकर अनशन तक, मोहम्मद फैज़ जी

Mohammad Faiz

हिंदुस्तान की माटी में कुछ तो जादू है, यहाँ घाट-घाट पर नई बोलियाँ और संस्कार हैं, नये रीतिरिवाज़ हैं.

एक ही देश में इतने धर्मों का मेल है. आपसी-भाईचारा है. सामने वाले की धार्मिक भावनाओं का आदर करना, हमें बखूबी आता है.

अब जब ऐसा कहते हैं तो कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आएगा. लोग हमें कहेंगे कि आखिर हम क्यों धर्मों एवम समाज को जोड़ने की बातें कर रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि आज भी भारत देश में, भाईचारा जिन्दा है, हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए हमारे बीच आज भी उदाहरण मौजूद हैं. आइये आपको मिलाते हैं आज छत्तीसगढ़ के रायपुर से संबंध रखने वाले, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के गौसेवा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद फैज़ जी से. मोहम्मद फैज़ जी धर्म से तो मुस्लिम हैं, लेकिन कर्म से वैदिक हैं. जी हाँ इनको आज भी अपने मुस्लिम होने पर गर्व है, लेकिन फिर भी देश की गायें इनके लिए पूजनी हैं. इनके लिए गाय काटने की कोई वस्तु नहीं है, बल्कि गाय के महत्व को जन-जन तक पहुँचाने के लिए मोहम्मद फैज़ जी गौ माँ की कथा करते हैं. गाय के लिए अनशन करते हैं. सरकार से टक्कर लेते हैं.

Mohammad Faiz

Mohammad Faiz

कब शुरू हुआ यह क्रम

फैज़ जी वैसे तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में प्रोफेसर थे, अच्छी खासी एक नौकरी इनके पास थी. लेकिन शायद खुदा को कुछ और ही मंजूर था. नौकरी करते हुए ही इन्होनें, गिरिश पंकज जी का एक उपन्यास ‘एक गाय की गाथा’ पढ़ा, जिसके बाद इनको गाय के महत्व और हमारे संसार में गाय की भूमिका के बारे में, विस्तार से जानने का मौका मिला. उसी दिन से इन्होनें गौ-कथा कहना शुरू कर दिया। तबसे लेकर आज तक गाँव और शहरों में जाकर लोगों को गौ-कथा सुना रहे हैं. यहाँ तक कि अपने धर्म के लोगों तक, गाय की गाथा लेकर जा रहे हैं.

एक और छोटा सा किस्सा यह भी है कि पुस्तक को पढ़ने से पहले फैज़ जी ने रायपुर में एक धरना दिया था. हैदराबाद के एक कालेज में गो मास जब खाया गया था, तब किसी हिन्दू को इसका विरोध नहीं करते देख, इन्होनें एक धरना दिया था. इस घटना को हम प्रारम्भ बोल सकते हैं, जिसके बाद पुस्तक पढ़कर, इन्होनें आगे का रास्ता चुना है.

धर्म से मुस्लिम

आप ऊपर लिखी जानकारी से यह मत समझ लेना कि मोहम्मद फैज़ जी ने अपना धर्म बदल लिया है. आज भी दिन में नमाज़ पढ़ते हैं. रोजा रखते हैं. मस्जिद जाते हैं. जो काम एक मुसलमान करता है, वो सब कुछ फैज़ जी भी करते हैं.

गौ के लिए अनशन

मोहम्मद भाई 15 दिसंबर 2014 से अभी तक सिर्फ दूध का सेवन कर रहे हैं। 24 घंटे में वो कम से कम 2 लीटर दूध पीते हैं. बिना अन्न लिए, मात्र गाय के दूध पर जीना भी एक अनोखा प्रयोग है और यह सफल भी होता दिख रहा है. अभी पिछले ही साल फैज़ जी दिल्ली के जंतर-मंतर पर गाय हत्या बंदी रोक के लिए भी अनशन पर बैठ चुके हैं. अपने समुदाय में वह काफिर के नाम से भी पुकारे जाने लगे हैं.

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कट्टरपंथियों ने किया विरोध
गौसेवा की इनकी बात जब इनके ही धर्म के कुछ लोगों के कानों तक जाती है, तब उन्हें यह सही नहीं लगा. एक मुस्लिम व्यक्ति कैसे गाय के लिए, अपना पूरा जीवन समर्पित कर सकता है, दिल्ली जाकर अनशन पर बैठ सकता है. जब असमाजिक तत्वों को इससे समस्याएं खड़ी हुई तो इन लोगों ने, मोहम्मद फैज़ जी का विरोध भी किया. लेकिन आज भी इनको इस एकता के लिए मिशाल बनने से कोई रोक नहीं पा रहा है. अपने पवित्र उद्देश्य में यह निरंतर आगे बढ़ रहे हैं.

क्या कहते हैं मोहम्मद फैज़ जी

गौ वंश की तस्करी पर अपने विचार रखते हुए यह कहते हैं कि गायों की तस्करी पर रोक लगनी चाइये. देश में गौमाता पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जनजागृति ही है. हमारी सरकार और प्रशासन को जल्द से जल्द उचित कानून बनाने होंगे. गाय से हम मॉस के अलावा भी बहुत से उत्पात प्राप्त करते हैं, जो जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी भी हैं.

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मोहम्मद फैज़ जी की इंसानियत हम सब सलाम करते हैं. अपनी जान और अपने जीवन की परवाह ना करते हुए, इन्होनें आपसी- भाईचारे के लिए जो कदम उठाये हैं, इतिहास उसके लिए इनको हमेशा याद रखेगा. आज जहाँ कुछ लोग गौ वध का विरोध कर रहे हैं, वहीं इनका यह प्रयास समाज को जोड़ने का ही काम कर रहा है.

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