आज अगर आप भारत के किसी भी छोटे या बड़े शहर जातें हैं तो आप को हर जगह लोगों का एक ऐसा सैलाब नज़र आता हैं कि जैसे हम किसी जुलुस या मजमे से गुज़र रहे हैं.
चाहे वह ट्रेन हो या बस या फिर सड़के हर जगह सिर्फ सर ही सर नज़र आते हैं.
पुराने वक़्त में एक दम्पति से 9-10 बच्चे सामान्य लग सकते थे क्योकि उस वक़्त लोगों के पास मनोरंजन के साधन कम थे लेकिन यदि आज किसी दम्पति के 2 से अधिक बच्चे हो गए तो सभी लोग उस जोड़े की तरफ इस निगाह से देखतें हैं कि जैसे उन्होंने ने शादी के बाद तीन बच्चे पैदा कर के दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह कर दिया हैं.
आज की तारीख में भारत की जनसँख्या लगभग 1.27 अरब हैं.
भारत की जनसँख्या विश्व की कुल जनसँख्या की 17.5% हैं लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का मात्र 2.4% हैं. पुरे विश्व में भारत और चीन की आबादी विश्व जनसँख्या की 40% हैं, मतलब पूरी दुनिया में हर 10 में से 4 व्यक्ति या तो भारतीय होता हैं या फिर चीनी होता हैं.
भारत देश में हर मिनिट 29 बच्चे जन्म लेते हैं, यानि हर रोज़ लगभग 42500 व्यक्ति इस देश में नए होते हैं.
इन सब आकड़ों को देखने के बाद एक सवाल यह उठाता हैं कि इस देश में जिस अनुपात में लोगों की आबादी बढ़ रही हैं, क्या उसी हिसाब से इन लोगों के जीवनयापन के लिए पार्यप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध हैं?
और यदि साधन उपलब्ध हैं तो क्या यह लोग उसका उपभोग करपाने में सक्षम हैं?
यहाँ सक्षमता से मेरा आशय धन से हैं, क्योकि पैसों के बिना यह सारे साधन दुकानों में सजी वस्तुएं मात्र हैं.
भारत जैसे देश में आम आदमी के लिए यह बुनियादी चीज़े जुटाना ही इतना मुश्किल होता हैं कि अपनी ज़रूरतें पूरी करने का यह काम ही उन की पूरी जिंदगी का लक्ष्य बन कर रह जाता हैं और इन सब समस्यों पर भारत के कमअकल नेता इतने संवेदनहीन होते हैं कि आये दिन अपने उटपटांग बयानों से लोगों की ज़िन्दगियों को अधिक दूभर बनाने का काम करते है.
ऐसी ही मुर्खता का प्रदर्शन अभी कुछ दिन पहले एक अव्वल दर्जे के मुर्ख नेता ने किया और कहाँ कि “मुसलमानों की तरह हिन्दुओं को भी चार शादी करना चाहिए”
उस नेता ने यह बात सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए कही थी क्योकि उन नेता के अनुसार “इस देश में मुसलमान जिस तेज़ी से बढ़ रहे हैं उससे यही लगता हैं एक दिन हिंदुस्तान में हिन्दू ही अल्पसंख्यक हो जायेंगे”
अगर उन महानुभावों की इन सब बातों को कुछ देर के लिए नज़रंदाज़ कर भी दे तो भी मुख्य मुद्दा तो वही का वही हैं कि विवाह कानून में थोड़े बदलाव के साथ हिन्दू चार शादियाँ कर तो सकते हैं, लेकिन शादी के बाद उनकी रोज़ की जिंदगी में होने वाले खर्च का भार क्या वह नेता उठाने वाले हैं?
क्योंकि भारत में हर व्यक्ति की औसत कमाई में सिर्फ तीन लोगों का जीवन अच्छे से चल सकता हैं इसलिए आजकल नयी दम्पतियों ने “बच्चे दो ही अच्छे” के नारे को बदल कर “हम दो हमारा एक” कर दिया हैं और ये भौकालियें नेता आये दिन उल-जलूल बातों से लोगों की बुद्धि भ्रष्ट करने में तुले होते हैं.
हम इस पोस्ट से आप को यह नहीं कह रहे हैं कि आप बच्चे पैदा ना कीजिये. बस यह बताना चाह रहे हैं कि उन जाहिल नेताओं की बात पर आने से पहले अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करे क्योकि शादी का उद्देश्य सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं होता हैं.