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कहानी ख़ुदा के बन्दे आबिद की, जिसने पैसा छोड़कर अपने ईमान को चुना

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साहब आजकल के ज़माने में ईमानदार वही है जिसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिला

लगभग रोज़ ही ना जाने कितनी बार अलग अलग लोगों से ये बात हम सब सुनते है.

ये बात पूरी तरह सही नहीं है. फिर भी कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएँ होती है जो बताती है कि बुराई, बेईमानी भले ही कितनी भी बढ़ रही हो पर आज भी अच्छाई और ईमानदारी जिंदा है.

ऐसी ही एक ताज़ा घटना जयपुर की है.

हाल ही में जयपुर के एक साधारण रिक्शा चालक ने ईमानदारी की मिसाल कायम की.

जयपुर में रिक्क्षा चलाने वाले अयूब कुरैशी को दो दिन पहले अस्पताल के पास एक बैग मिला. बैग को जांचने के बाद उनको पता चला कि उस बैग में करीब एक लाख बीस हज़ार रुपये है.

छब्बीस वर्षीय अयूब जो दिन में बमुश्किल 200-300  रुपये कमाते है उन्हें एक पल को भी लालच नहीं आया इतनी बड़ी रकम देखकर.
उन्होंने इधर उधर नज़र दौड़ाई की शायद कोई इस बैग को तलाश रहा हो. लेकिन अयूब को ऐसा कोई नज़र नहीं आया जिसका वो बैग हो.

abid jaipur

सामाजिक कार्यकर्ता सबीर कुरैशी की मदद से अयूब जयपुर पुलिस कमीश्नर के दफ्तर गया और वहां पूरी रकम जमा करवा दी.

पुलिस कमीश्नर ने भी अयूब की तारीफ करते हुए कहा की अयूब ने एक ईमानदारी की मिसाल कायम की है, आज के जमाने में ऐसे लोग कम ही होते है.

जब अयूब से पुछा गया कि उसने वो रकम अपने पास क्यों नहीं रखी जबकि वो खुद बहुत गरीब है और बहुत मुश्किल से अपना पेट पालते है और अपनी बेटी के विवाह के लिए रूपया रूपया जोड़ रहे है.

इस सवाल पर आबिद ने कहा कि सच्चा मुसलमान कभी हराम का नहीं खाता और ईमानदार पर ऊपर वाले की नियामत होती है और चंद रुपियों के लिए ईमान का सौदा नहीं किया जाता .

Jaipur-Rickshawpuller
आबिद की पत्नी ने भी आबिद को ये रुपये लौटाने की सलाह दी, और उनके करीब रहने वाले एक अध्यापक ने आबिद की मदद की.

आबिद की कहानी पढ़कर लगता है कि इस जहाँ में इंसानियत अब भी बाकि है. वैसे गौर करने वाली एक और बात है आबिद अपनी ईमानदारी के लिए कुरान की आयत बताता है वहीँ इंसानियत का क़त्ल करने वाले आतंकी भी भोले भले मासूम युवाओं को कुरान और ख़ुदा के नाम पर भटकाते है.

तो ये थी कहानी ख़ुदा के बन्दे आबिद की जिसने पैसा छोड़कर अपने ईमान को चुना .

एक ही ख़ुदा, एक ही कुरान पर मानने वाले उसे अपने अपने तरीके से मानते है.

आशा करते है आबिद के उदाहरण से हम सब भी सीख सकते है कि कुछ खुशियाँ सिर्फ बेईमानी से या पैसे से नहीं हासिल होती. सच्ची ख़ुशी तो अच्छा काम करने से ही मिलती है.