जीवन शैली

90 के दशक में कुछ ऐसी होती थी गर्मियों की छुट्टियां, ताज़ा कीजिए उस खुशनुमा दौर की यादें

गर्मियों की छुट्टियां – 90 के दशक का वो सुनहरा दौर, जिस वक्त की यादें फोन की गैलरी में नहीं, बल्कि हमारे दिल में कैद हैं।

जी हां, ये दौर बहुत खास था और खासकर, हम जैसे लोगों के लिए जो उस वक्त बच्चे थे यानी की जिनका बचपन उस दौर में बीता था।

जी हां, 90 के दशक की यूं तो हर बात खास थी वो टीवी पर दूरदर्शन के सीरियल्स देखना और प्रोग्राम साफ ना आने पर छत पर जाकर एन्टीना ठीक करना, 1 या 2 रूपये पाकर भी खुश हो जाना और पिगी बैंक में कुछ पैसे या फिर यूं कहे कि ज़माने भर की दौलत को जोड़कर इठलाना।

90 के दशक की गर्मियों की छुट्टियां –

आप भी अगर 90’s में पैदा हुए हैं तो ये सब बातें आपकी यादों में भी शुमार होंगी। वैसे इस दशक में गर्मियों की छुट्टियों का भी अलग ही मज़ा हुआ करता था। जहां आज के वक्त में बच्चें गर्मियों की छुट्टियां आते ही मोबाइल और वीडियो गेम्स के साथ वक्त बिताना पंसद करते हैं, रूम के एसी के तापमान को कम करते हुए घर पर ही वक्त बितात हैं तो वही 90’s में जब गर्मियों की छुट्टियां पड़ती थी तो हमारी लिस्ट में सबसे ऊपर होता था भरी दोपहरी वो सारे काम करना जिन्हें करने की सख्त मनाही थी।

अमूमन छुट्टियां पड़ते ही पहले हफ्ते में नानी के यहां चले जाना तो निश्चित होता ही था और साथ में बगीचे में से कच्चे आमों पर निशाना लगा-लगाकर तोड़ना और उन्हे खाना, ये भी किसी बड़ी खुशी से कम नहीं था।

गलियों से आती छक्के-चौके की आवाज़ें और लड़कों की टोली का हुडदंग इस बात का सबूत हुआ करता था कि गर्मी की छुट्टियां आ चुकी हैं।

इसके अलावा छुपा-छुपाई भी हमारे पसंदीदा खेलों में से एक हुआ करता था। मिट्टी के बर्तनों पर खेल-खेल में दुनिया भर की डिशेज़ बना लेना और फिर उसे सबको दिखाकर और सबके साथ बांटकर खाना, सच में वो बात ही कुछ और थी। वैसे इस सब के अलावा कार्टून मूवीज़ की सीडी लाना और फिर उन्हे डीवीडी प्लेयर पर लगाकर देखना भी अलग ही खुशी देता था।

दिन भर मम्मी से ऊंट-पटांग हरकतों के लिए डांट खाना और शाम को पापा के आने पर उन्हे सब बताने की धमकी सुनना, ये भी छुट्टियों में रोज की बातों में ही शुमार हो जाता था। इसके अलावा लड़कियों के लिए मम्मी की साड़ी पहनना और गुड्डे-गुड़ियों की शादी करवाना भी गर्मी की छुट्टी का ही हिस्सा हुआ करता था।

वक्त के साथ ना केवल ये दौर बीत गया है बल्कि गर्मियों की छुट्टियों की ये खुशियां भी कहीं गुम सी हो गईं हैं। अब गर्मी की छुट्टियां तो आती ही पर अपने साथ मस्ती नहीं, बल्कि ढ़ेर सारे होमवर्क, असाइनमेंट्स और प्रोजेक्ट्स की भरमार लाती हैं। और जो थोड़ा-बहुत वक्त बचता है उसे आजकल के बच्चे मोबाइल में खेलते हुए ही बिता देते हैं।

ऐसी थी 90 के दशक की गर्मियों की छुट्टियां – अब चौके-छक्के तो लगते हैं लेकिन मोबाइल की स्क्रीन पर, लूडो में सामने वाली की गोटी काटने का शोर भी अब सुनाई नहीं देता, अधिकतर पैरेंट्स के कामकाजी होने की वजह से अब मम्मी की वो डांट भी कानो में नहीं पड़ती, सच में अब गर्मियों की छुट्टियां पहले जैसी नहीं रह गईं हैं, अब छुट्टियां तो आती हैं पर उनमें वो बात नहीं होती।

Deepika Bhatnagar

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