‘प्यासा’ तो आपने देखी ही होगी.
गुरु दत्त जी की इस फिल्म में लेखकों को जीते-जी मिली नकारता को बहुत ही सूक्ष्मता से दिखाया गया है. और फिर जब लेखकों को मौत के बाद जो प्रसिद्धि प्राप्त होती है, इस धारणा को भी बड़ी ही भावुकता से दर्शाया गया है.
लेकिन कुछ ऐसे लेखक भी होते हैं जिनकी मृत्यु के बाद भी उनके नाम को प्रसिद्धि नहीं मिलती और कुछ ऐसे लेखक भी हैं जो बहुत शानदार लेख लिखते हैं और जिंदा होते हैं लेकिन उनके काम को प्रसिद्धि नहीं मिलती.
इस सूची में ऐसे लेखक शामिल हैं जिन्होंने कलम के साथ कमाल किये हैं लेकिन उनके इन कमालों की सिर्फ बेखबरी ही छाई हुई है.
१. वैद्यनाथ मिश्र (नागार्जुन).
“हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!”
बाबा नागार्जुन जी की ‘गुलाबी चूड़ियाँ’ यह कविता कोई कितनी ही बार पढ़े कम है. नागार्जुन जी का जन्म सन १९११ में बिहार में हुआ. इनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सराहा गया सन १९६९ में.
उन्होंने मैथिलि में और हिंदी में कई लेख लिखे हैं. उन्होंने बंगाली में भी अखबारों के लिए कई लेख लिखे हैं.
२. राधाकृष्ण
राधाकृष्ण चौधरीजी एक इतिहास्कार, एक विचारक और एक लेखक थे.
उनका जन्म १५ फ़रवरी १९२१ में बिहार में हुआ और मृत्यु १९८५ में हुई. उन्होंने बिहारी इतिहास के बारे में कई लेख लिखे हैं जो आज भी आधार का विषय बनकर कायम हैं. गणेश दत्त कॉलेज के प्राध्यापक रहे राधाकृष्ण चौधरी जी ने मैथिलि और हिंदी में अपनी कलम का जादू फैलाया हुआ है.
३. कन्हैय्यालाल मिश्र
कन्हैय्यालाल मिश्र का जन्म १९०६ में उत्तर प्रदेश में हुआ. उनके अफसानों का संग्रह ‘आकाश के तारे धरती के फूल’ साहित्य के सबसे ऊम्दा उदाहरण है. कन्हैय्यलाल जी पद्मश्री पुरस्कार हासिल कर चुके थे लेकिन कई लोगों से उनके लेख अब भी पढ़े नहीं गए हैं.
४. शिव कुमार (शीन काफ निज़ाम).
शिव कुमार राजस्थान के रहिवासी हैं. शीन काफ निजाम इनका उपनाम है.
उनकी किताबें, ‘गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियाँ’ और ‘सायों के साए में’ उर्दू और हिंदी साहित्य का निचोड़ हैं. स्वयं गुलज़ार साहब भी इनके प्रशंसकों में से एक हैं. लेकिन इनके साहित्य को इतना अनावरण प्राप्त नहीं हुआ जितना मिलना चाहिए था. यह अब भी राजस्थान में रहते हैं और वहाँ के महान साहित्यकारों में से एक हैं. उर्दू नज्में और कविताएँ इनके कार्यक्षेत्र हैं.
५. हरिशंकर परसाई.
हिंदी के महान साहित्यकार हरिशंकर परसाई जी का जन्म २२ अगस्त १९२४ में हुआ और मृत्यु १० अगस्त १९९५ में. वे एक शानदार व्यंग और हास्य लेखक थे. १९८२ में ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सराहा गया. उनके लेखों से आज भी अनेक लोग वंचित हैं. बड़े-बड़े लेखक उनकी लेखन शैली के कायल रह चुके हैं.
६. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’.
सूर्यकांत त्रिपाठी जी का जन्म १८९६ में मिदनापुर, बंगाल में हुआ और मृत्यु १९६१ में इलाहाबाद में हुई. वे एक कवी, उप्न्न्यास्कार और कहानीकार थे. लोग कहते हैं कि निराला जी हिंदी साहित्य के सबसे महान लेखक हैं. उन्होंने हिंदी कविताओं में मुक्त छंदों(free verse) की शुरुआत की. छायावादी लेखकों में सबसे महान निराला जी से आज भी कई लोग वंचित हैं यह बहुत दुःख की बात है. वे अनेक भाषाओं में विशेषज्ञता रखते थे. संस्कृत उनकी सबसे मनपसंद भाषा थी.
जानकर वाकई में बहुत कोफ़्त होती है कि आज का पाश्चात्य भारत इन महान लेखकों और कवियों से अज्ञात है. ज़िन्दगी की मौलिक सच्चाई में डुबोए इनके लेख मीठे को पसंद करनेवालों के लिए चाशनी का काम करते हैं. इनके लिखे उपन्यासों, कहानियों और कविताओं में हिंदी भाषा का सार मौजूद है. अगर हमें अपने महान हिंदी साहित्य का ज़रा भी ख्याल है तो इन लेखकों की लिखी चीज़ें पढना या कम से कम उन्हें जानना ज़रूरी है.
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