गरीबी हटाओ के नारे के दम पर इंदिरा गांधी ने 1971 का चुनाव भारी बहुमत से जीता था. पर इंदिरा गाँधी ने जिस निरंकुशता के साथ शासन करना शुरू किया उससे जनता के बीच गुस्सा होना स्वभाविक था.
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ लोग लामबंद होना शुरू हो गए. बस इंदिरा गाँधी अपनी कुर्सी बचने की जद्दोजहद में लग गयी.
इंदिरा गाँधी को दूसरा झटका इलाहबाद हाईकोर्ट से मिला.
12 जून,1975 को न्यायमूर्ति जगनमोहन सिन्हा ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. जिसमे उन्होंने कहा की रायबरेली सीट से इंदिरा गाँधी की लोकसभा सदस्यता अवैध है.
इतना ही नहीं न्यायालय ने उनके अगले छह साल तक किसी भी तरह का चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इसने इंदिरा गाँधी के आत्मविश्वास को अन्दर तक हिला दिया.
26 जून, 1975 भारतीय इतिहास का वो काला दिन है , जिस दिन अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को देश में आपातकाल लगाने को मजबूर किया.
बिहार में जयप्रकाश नारायण का छात्र आन्दोलन सम्पूर्ण क्रांति का रूप ले चूका था.
ऐसे में अपने कुछ सलाहकारों और संजय गाँधी की बात मान कर इंदिरा गाँधी ने आपातकाल को ही अपने बचाव का कारगर विकल्प माना. सभी नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया. आपातकाल की पूर्व संध्या और अगले ही दिन देशभर के सभी दलों के बड़े नेताओं को जेल में ठूस दिया गया.
प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गयी. 21 महीने के आपातकाल के दौरान जिसने भी आवाज़ उठाने की कोशिश की, उसे मीसा और रासुका जैसी धाराएं लगाकर जेल में डाल दिया गया. इन 21 महीनो में जुल्म की इन्तेहा कर दी गयी. बच्चे, बूढ़े, महिला, नौजवान किसी को भी नहीं बख्शा गया.
आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी के 20 सूत्री कार्यक्रम को लागू करने के क्रम में की गयी जोर-जबरदस्ती ने देश में आक्रोश को और बढ़ा दिया. सबसे ज्यादा विरोध जबरन नसबंदी को लेकर हुआ.
आपातकाल के दौरान संजय गाँधी सत्ता का केंद्र बिंदु बन गए थे. उनके निर्देश पर नौकरशाही ने जमकर उत्पीड़न किया. जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, आडवानी, जेबी कृपलानी को जहाँ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. वहीँ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया.
गुजरात और तमिलनाडु की राज्य सरकारें भंग कर दी गयी. लोकतंत्र के चारों स्तम्भ पर आपातकाल का पहरा लगा दिया गया. 1 साल में करीब 8 करोड़ तीस लाख लोगों की ज़बरदस्ती नसबंदी करा दी गयी. जोर ज़बरदस्ती का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 21 माह के आपातकाल के दौरान बिना कारण बताए 1 लाख 40 हज़ार लोगों को गिरफ्तार किया गया.
आपातकाल के लगभग 2 साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख इंदिरा गाँधी ने लोकसभा भंग कर दुबारा चुनाव की सिफारिश की.
चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. खुद इंदिरा गाँधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गयी.
जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने.
कांग्रेस 350 से सिमट कर 153 सीटों तक ही रह गयी.
उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पायी.
वेश्याओं के रेड लाइट इलाके में हर रोज़ सजती है जिस्मफरोशी की मंडी. इस मंडी…
संघर्ष करनेवालों की कभी हार नहीं होती है. जो अपने जीवन में संघर्षों से मुंह…
वैष्णों देवी माता का मंदिर कटरा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.…
धन-दौलत की चाह रखनेवाले हमेशा धन की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं. माता लक्ष्मी…
साल के बारह महीनों में रमज़ान का महीना मुसलमानों के लिए बेहद खास होता है.…
उज्जैन के क्षिप्रा नदी के पूर्वी किनारे पर बसा है उज्जैन के राजा महाकालेश्वर का…