बच्चे को उम्रकैद की सजा – हर दिन अखबार से लेकर न्यूज़ चैनलों तक क्राइम की आप ढेरों खबरें सुनते होंगे, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि 4 साल के बच्चे को जेल हुई है?
यकीनन सुनकर चौंक गए होंगे आप, लेकिन कोर्ट को इस बात पर हैरानी नहीं हुई कि 4 साल का बच्चा कैसे कोई अपराध कर सकता है और कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुना डाली.
आपने शायद ही कभी किसी 4 साल के छोटे बच्चे को उम्र कैद की सजा सुनाए जाने के मामले के बारे में सुना होगा.
इस बारे में सुनकर ही आपको ताज्जुब हो रहा होगा लेकिन यह हकीकत है कि दुनिया में एक कोर्ट ऐसी भी है जिसने एक 4 साल के बालक को उम्रकैद की सजा सुना दी.
जी हां, यह कहानी है, एक 4 साल के मासूम बच्चे मंसूर कुरानी अली की. आपको यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि महज चार साल के बच्चे पर ऐसे संगीन अपराधों के इल्जाम लगाए गए जिसे दुनिया की शायद ही कोई और अदालत मान सके. इस एक कोर्ट ने न केवल उसे अपराधों के लिए दोषी ठहराया बल्कि बच्चे को उम्रकैद की सजा भी सुनाई. आप सोच रहे होंगे कि भला इतनी कठोर कौनसी अदालत हो सकती है भला..?
बच्चे को उम्रकैद की सजा – जी हां, यह मामला मिस्र का है.
यहां एक कोर्ट ने बच्चे को 4 लोगों की हत्या करने और 8 लोगों को जान से मारने की कोशिश करने व पुलिस को धमकाने के जुर्म में बच्चे को उम्रकैद की सजा सुनाई. जब ये मामला देशवासियों की नजर में आया तो इस फैसले का पुरजोर विरोध किया गया.
लोगों ने सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक कोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की. सिर्फ इतना ही नहीं, इस मामले पर तमाम बड़े एक्सपर्ट ने भी अपनी राय प्रस्तुत की. इसके बावजूद अदालत एक साल तक फैसले से टस से मस नहीं हुई. आप समझ सकते हैं कि कोर्ट और जज कितने अंधे और निष्ठुर होंगे.
जब यह मुद्दा विश्वव्यापी स्तर पर उठाया गया और मिस्र के कानून की निंदा शुरू हुई तब जाकर कोर्ट ने इस ओर अपना ध्यान दिया. अदालत ने दोबारा जांच के आदेश दिए. इसके बाद जब मामले का नया निचोड़ निकलकर सामने आया वह बेहद चौंकाने वाला था. दरअसल, जिन अपराधों के लिए मंसूर नामक इस बालक को 1 साल तक सलाखों के पीछे रखा गया, मालूम चला कि वह अपराध उसने किए ही नहीं थे.
किसी ने सच ही कहा है कि कानून अंधा होता है, बिना जाने-सुने एक मासूम को एक साल तक जेल में रखना भला कहां कि इंसानियत हुई. कोर्ट से इतनी बड़ी गलती हो सकती है यकीन नहीं होता, मगर सच्चाई तो यही है कि न्याय के मंदिर में इस मासूम के साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है.
सच तो यह था कि जो आरोप मंसूर पर लगाए गए थे उनकी जांच तक नहीं की गई थी और बिना जांच के ही कोर्ट ने सजा का फरमान सुना दिया। जी हां, दोबारा हुई जांच में मंसूर सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया। मिस्र के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि अदालत ने चार वर्षीय इस बच्चे को हत्या के लिए उम्रकैद की सजा सुनाकर भारी भूल की है।
गौरतलब हो मंसूर को मिस्र की कोर्ट ने 2014 के दंगो में भाग लेने के लिए 115 अन्य आरोपियों के साथ दोषी पाया था।
इसके लिए उसे एक साल की बेवजह सजा काटनी पड़ी। बाद में इस गलत फैसले के लिए कोर्ट ने मंसूर के पिता से माफी भी मांगी।
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