‘सवा लाख ते एक लडावा, तां गोविन्द सिंह नाम धरावा’
इस पवित्र नारे को लगाकर 21 भारतीय सैनिक 10000 अफगानी सैनिकों से अपने कर्तव्य और अपने स्वाभिमान की खातिर लड़ जाते हैं.
सभी को पता था कि इस लड़ाई से बचना तो बहुत मुश्किल है लेकिन दुश्मनों की जीत भी हमारी बहादुरी के लिए धब्बे का काम करेगी.
आपने आज तक स्पाटा की लड़ाई ही सुनी होगी जहाँ 300 बहादुर योद्धाओं ने दुश्मनों को टक्कर दी थी.
लेकिन आज जानिये भारतीय इतिहास को, इस इतिहास को दबा दिया गया, छुपा दिया गया, लेकिन शहीदों के बलिदान कभी छुपाये नहीं जा सकते हैं.
बात उन दिनों की है जब भारत गुलाम हुआ करता था. उन्हीं दिनों अंग्रेज एशिया के और देशों पर भी कब्ज़ा जमाने के इरादे से भारतीय सैनिकों का प्रयोग करते थे. ब्रिटिश लोग अच्छी तरह से जानते थे कि भारत में रहने वाले सिख लोग बहादुर होते हैं और अपनी आन-शान के लिए कुछ भी कर सकते हैं.
इसी क्रम 1897 में 21 भारतीय सिख सैनिकों की एक टुकड़ी को ब्रिटिश शासन ने अफगान के खैबर पख्तूनख्वा (सरगढ़ी) पर बनी चौकी पर भेजा गया था.
12 सितम्बर को सिख सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी हवलदार इसर सिंह के नेतृत्व में सीमा की रखवाली कर रही थी. तभी सुबह के लगभग 9 बजे 10 हजार से अधिक की संख्या वाली अफगान फौज ने चौकी पर हमला कर दिया.
भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज सैनिकों को मदद के लिए संदेश भेजा किन्तु उन्होंने तुरंत सहायता में असमर्थता की बात कही.
अब जब अफगानी सैनिकों ने इन सैनिकों को ललकारा तो इन 21 सैनिकों ने अंतिम सांस तक अफगानी सैनिकों को टक्कर दी और सभी 21 सैनिकों ने मरने से पहले इनके 600 अफगानी सैनिकों को मार गिराया था.
जबतक अंग्रेज फौज नहीं आई थी इन 21 सैनिकों ने तबतक इस लड़ाई को लड़ा और अफगानी सैनिकों को सीमा के अन्दर घुसने नहीं दिया था और बाद में अंग्रेजों ने भी इन सभी सैनिकों को मरणोपरांत ब्रिटिश शासन द्वारा इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान दिया गया जो वर्तमान के परमवीर चक्र के बराबर है.
आज भी भारतीय सेना इन सैनिकों की याद में सिख सरगढ़ी डे मानती हैं.
हम हमेशा दो हजार वर्ष पूर्व स्पार्टा में लियोनायडस 300 सैनिकों की लड़ाई पर तो बात करते है किन्तु इन 21 बहादुर योद्धाओं की गाथा हमें पता ही नहीं होती है.
शायद इसीलिए हमें आवश्यकता कि भारत के इतिहास को दुबारा लिखा जाए और अंग्रेज एवम मुग़ल इतिहास को अब खत्म किया जाये.
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