18 कैरेट सोने से बना है फीफा वर्ल्ड कप, जानिए इससे जुड़ी रोचक बातें
फुटबॉल का विश्व कप – फीफा वर्ल्ड कप का खुमार पूरी दुनिया पर छाया हुआ है.
रविवार को होने वाले फाइनल मुकाबले पर सबकी निगाहे टिकी रहेगी, क्योंकि इस दिन साफ हो जाएगा कि फुटबॉल विश्व कप की ट्रॉफी किस देश जाएगी. फुटबॉले के दीवानों के लिए वर्ल्ड कप बहुत बड़ा आयोजन होता है और इस बार के विश्व कप में तो शुरुआत से ही उल्टफेर होते रहे हैं.
फुटबॉल का विश्व कप – फिलहाल फाइनल मुकाबला फ्रांस और क्रोएशिया के बीच होगा.
पहली बार विश्वकप के फाइनल में पहुंची क्रिएशिया की टीम ट्रॉफी जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगी, वहीं फ्रांस की कोशिश रहेगी कि वो इतिहास दोहराकर दूसरी पर ये ट्रॉफी अपने नाम कर ले.
दोनों ही टीमें काफी मज़बूत है, लेकिन ट्रॉफी किसके हाथ लगेगी ये तो 15 जुलाई को ही पता चलेगा, फिलहाल हम आपको विश्व कप की ट्रॉफी से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं जो शायद ही आपको पता होंगी.
फुटबॉल का विश्व कप की टॉफी प्योर सोने से बनी होती है. फीफा विश्व कप की मौजूदा ट्रॉफी का डिजाइन इटली के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट सिल्वियो गाना ने तैयार किया था. इसमें कुल 18 कैरेट सोना लगा हुआ है. इसकी लंबाई 4.2 इंच है और वजन 6.175 कि.ग्रा. है.
इस ट्रॉफी को विश्व कप जीतने वाली टीम और उसके कोच ही खुले हाथों से छू सकते हैं. इनके अलावा किसी को भी इसे हाथों से छूने का अधिकार नहीं होता. बाकि किसी को इसे छूने से पहले हाथों में ग्लव्स पहनना ज़रूरी होता है.
फुटबॉल का विश्व कप चार साल में एक बार ही होता है ऐसे में विश्व कप टूर्नामेंट के बीच में इस खूबसूरत ट्रॉफी को ज्यूरिख बैंक की तिजोरी में संभाल कर रखा जाता है.
फीफा की ट्रॉफी का आकार कुछ ऐसा है, जिसमें दो मानव आकृतियां आगे-पीछे से धरती को हाथों में उठाए हुए नजर आती हैं. ट्रॉफी में दिखाई देने वाले लोगों को वीनस का सांकेतिक रूप माना जाता है.
1983 में जब ब्राजील ने तीसरी बार विश्व कप खिताब जीता था तो फीफा ने उसे असली ट्रॉफी प्रदान की थी, लेकिन इसी दौरान ट्रॉफी का ऊपरी हिस्सा गायब हो गया था. कुछ देर बाद वो हिस्सा एक दर्शक के पास मिला. इस घटना के बाद से नई ट्रॉफी को केवल एक हिस्से में बनाया गया.
जूल्स रिमेट फीफा के पूर्व अध्यक्ष थे, इन्होंने 1930 के पहले विश्व कप में अहम योगदान दिया था. जिसके चलते उनके नाम पर फीफा की पहली ट्रॉफी का नाम रखा गया था. 1970 तक ट्रॉफी को ‘जूल्स रिमेट ट्रॉफी’ कहा जाता था.
इस ट्रॉफी को पहले ‘विश्व कप’ या ‘कोप डु मोंडे’ के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में फीफा ने जूल्स रिमेट के योगदान को देखते हुए वर्ष 1946 में ट्रॉफी का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया गया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि फीफा विश्व कप की ये बेशकिमती ट्रॉफी चोरी भी हो चुकी है. वो भी एक नहीं दो बार. पहली बार लंदन में और दूसरी बार ब्राजील में.
1983 में ब्राजीली फुटबॉल परिसंघ ने ट्रॉफी को रियो डि जिनेरियो के अपने हेडक्वार्टर में एक बुलेटप्रूफ कांच की अलमारी में रखा था. किसी ने 19 दिसंबर 1983 को उस अलमारी के पिछले हिस्से पर हथौड़ा मारकर ट्रॉफी को चुरा लिया था. इसके बाद वह ट्रॉफी दोबारा कभी नहीं मिली.
1966 में फुटबॉल का विश्व कप के ठीक तीन महीने पहले सेंट्रल लंदन के वेस्टमिंस्टर हॉल में यह ट्रॉफी पहली बार चोरी हुई थी, हालांकि चोरी होने के 7 दिन बाद ही ट्रॉफी एक गार्डन में अखबार में पड़ी मिली थी.
फुटबॉल का विश्व कप जितना रोमांचक होता है उसकी ट्रॉफी से जुड़ा इतिहास भी उतना ही रोचक है. अब देखना ये है कि इस बार इस बेशकीमती ट्रॉफी को कौन जीत पाता है?