16 दिसम्बर 2012 निर्भया बलात्कार कांड
वो दिन जिस दिन इंसानियत को बेदर्दी से कुचल दिया गया. “यत्र नर्येस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता” वाले देश में एक नारी की अस्मिता को न सिर्फ तार तार किया गया बल्कि उसका ऐसा तमाशा बनाया गया जिसके बारे में सोचकर आज भी शर्म आती है.
दिसम्बर की उस ठंडी शाम में एक लड़की अपने एक दोस्त के साथ रात को करीब 9 बजे कहीं बहार से आ रही थी. घर जाने के लिए दोनों ने एक बस पकड़ी, उस लड़की को क्या पता था कि वो बस यात्रा उसकी जिंदगी की आखिरी यात्रा होगी. उस बस में इंसान की शक्ल वाले हैवान बैठे थे.
उन राक्षसों ने ना सिर्फ उस लड़की को अपनी हवास का शिकार बनाया अपितु उसके साथ ऐसी ऐसी हरकतें की जो कोई सोच भी नहीं सकता.
राक्षसों ने पहले उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद उसके गुप्तांगो में रॉड डाल दी. इतने पर भी उनका मन नहीं भरा. उन्होंने उस मरणासन्न लड़की को सडक पर फेंक दिया.
लड़की का घायल दोस्त अपनी लहुलुहान साथी को बचने के लिए लोगों से मदद की गुहार लगाता रहा. लेकिन कोई भी उस लड़की की मदद को आगे नहीं आया. हाँ ये बात और है कि उस लड़की के मरने के बाद जब ये बलात्कार कांड एक आन्दोलन में बदल गया तो उस लड़की को तडपता छोड़ने वाले लोग भी मोमबत्तियां जलाकर घडियाली आंसू बहाने में पीछे नहीं था.
कोमा में ही उस लड़की की मृत्यु हो गयी. उसके बाद शुरू हुआ सरकार और जनता का नाटक. कहीं मार्च, कहीं बैनर कही एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप और इन सब के बीच मीडिया ने हर रोज़ उस लड़की का बलात्कार किया.
आज उस घटना को तीन साल हो गए है. 17 साल का वो शैतान जिसने बलात्कार किया था वो सुधार गृह से रिहा हो रहा है. राजनीती के नाम पर अपनी रोटियां सकने वाले और एयर कंडीशनर की हवा में बैठ कर समाज सुधार की चीख पुकार मचाने वाले कहते है कि वो दरिंदा सजा का हकदार नहीं है क्योंकि वो नाबालिग है.
उस दिन के बाद आन्दोलन करने वाले भी अब सब भूल गए है. आज भी हर रोज़ ना जाने कितनी लड़कियां राक्षसों की हवास का शिकार बनती है लेकिन हमारी तो आदत है कि जब तक कोई बात ट्रेंड नहीं होती सोशल मीडिया पर तब तक हम परवाह नहीं करते.